डेंटल कॉलेज में भर्ती में घोटाला



इंदौर। डेंटल कालेज  में पिछले कुछ सालों से सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। चिकित्सालय के जिम्मेदारों को किसी का भी खौफ नहीं है। अपनों को और प्रभावशाली को लाभ पहुंचाने में अव्वल यह चिकित्सालय भर्तियों में ऐसी गड़बड़ी कर रहा है जैसे पहले की तरह अब भी इसका कोई बाल बाका नहीं कर पाएगा। पारदर्शिता नहीं होने के कारण यहां नौकरी की उम्मीद बांधे चिकित्सकों को हमेंशा ही हताशा हाथ लगती है। ऐसी कोई भर्ती नहीं होगी, जिसमें बवाल न मचा हो। और आरोप न लगे हों।
 
कालेज ने पिछले साल अक्टूबर में प्राध्यापक के एक सह प्राध्यापक (रीडर) के सात, सहायक प्राध्यापक (लेक्चरार) के उन्नीस और ट्यूटर के तीन पद कुल तीस पदों के लिए विज्ञापन निकाला गया था, लेकिन विधानसभा आने से आचार संहिता लग गई।  चुनाव के बाद फरवरी में ट्यूटर को छोड़ सादे पदों में भर्ती कर ली गई। इस भर्ती में नियमों की अनदेखी  और कुछ खास लोगों को तवज्जो देने पर खूब बवाल मचा। कई आरोप लगे। हाईकोर्ट तक मामला पहुंचा। सुनवाई चल रही है और फैसला आना बाकी है। यकायक कालेज के जिम्मेदारों को ट्यूटर भर्ती की याद आई उन्होंने पुराने विज्ञापन के आधार पर लिखित परीक्षा ली, वहीं अगले दिन साक्षात्कार के बाद  अपाइंटमेंट लेटर थमा दिया। विज्ञापन में ट्यूटर के रिक्त पदों की संख्या तीन थी, जो कि बढ़ाकर पांच कर दी गयी। समान्यवर्ग में इस पद के लिए डा. श्रद्धा पंवार, डा. निशिथा अग्रवाल और डा. श्रुति साबू बाकलीवाल, वही ंअनुसूचित जाति वर्ग में डा. अरुणकुमार अशाहिया और पिछड़ा वर्ग में डा. अभिषेक बजोलिया को चुन लिया गया। आरोप लगाने वालों का कहना है कि भर्ती में पारदर्शिता नहीं रखी गयी है। लिखित परीक्षा के बजाए आनलाइन परीक्षा लेना चाहिये थी। वहां तो पेपर देकर टिक लगाने को कह दिया गया, जिन्हें चुनना था, उन्हें चुन लिया गया। जो लोग चुने गए हैं। उनसे ज्यादा काबिल चिकित्सकों को भार कर दिया गया। आरोप लगाने वालों का कहना है कि नियुक्तियां तो पहले से ही तय थी। चुने गए चिकित्सकों में एक का नाता शहर कांग्रेस के पदाधिकारी से दूसरे का एक मंत्री के पीए से बताया जा रहा है और बाकी के लिए सिफारिशें न आई हो, संभव नहीं हैं। पूर्व भर्ती की तरह इस भर्ती को भी अदालत में चुनौती देने की तैयारी है। कमलनाथ सरकार से भर्ती की जांच करवाने की मांग की गई। चुनने वालों का कहना है कि सारा काम नियम कायदे से हुआ है, तो फिर बवाल क्यों।


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