*भारत छोड़ो आंदोलन वर्षगांठ:* 98 वर्षीय कवि-गायक कवि तोमर का राष्ट्रपति की तरफ से सम्मान
- 🔺इंदौर, कीर्ति राणा
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या (30 जनवरी 1948) करने वाले नाथूराम गोड़से के नाम से पिवड़ाय गांव के लोगों को ऐसी नफरत हुई कि आजादी आंदोलन में भाग लेने वाले युवक नत्थू सिंह का नाम बदलकर नरेंद्र सिंह तोमर कर दिया।यही वजह है कि सेनानी-कवि-गायक 98 वर्षीय तोमर का पूरा नाम लिखते वक्त जिला प्रशासन से लेकर राज्य और केंद्र सरकार तक को उनके नाम के साथ उर्फ नत्थू सिंह लिखना पड़ता है।राष्ट्रपति कोविंद भारत छोड़ो आंदोलन की वर्षगांठ पर देश के सेनानियों को सम्मानित कर रहे हैं, कोरोना के चलते दिल्ली में समारोह हो नहीं सकता था।वयोवृद्ध तोमर (98 वर्ष) दिल्ली तक का सफर करने की स्थिति में नहीं, सुनने और बोलने की शक्ति भी क्षीण हो चुकी है।ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति की तरफ से एसडीएम रविश श्रीवास्तव पिवड़ाय स्थित निवास पर उन्हें अंगवस्त्र, शाल, स्मृति चिन्ह भेंट करने गए।ताम्रपत्र पर भी उनके नाम के साथ उर्फ नत्थूसिंह दर्ज है।
आकाशवाणी से उनके लिखे-गाए गीतों की वजह से लगभग पूरे प्रदेश में तोमर नरेंद्र सिंह के नाम से ही पहचाने जाते हैं इसलिए पिवड़ाय के नत्थू सिंह का सम्मान किया गया की जानकारी उनके प्रशंसकों को लगी तो कई को इस नाम पर अचरज भी हुआ।
उनके छह पुत्रों में से तीसरे पुत्र योगेंद्र सिंह तोमर (65) वर्ष ने कहा मेरे पास भी कई लोगोंके फोन आए तो मैंनेउन्हें स्थिति स्पष्ट की।गांधी जी के आंदोलन से प्रभावित नत्थ उर्फ नरेंद्र सिंह (जन्म 1923) 18 वर्ष की उम्र में आजादी आंदोलन में कूद पड़े थे।फिरंगियों के खिलाफ हिंदी-मालवी में कविता लिखते और सुभाष चौक पर होने वाली बड़े नेताओं की आमसभा में उनकी आवाज में उनके ही गीत सुनने लोग उमड़ पड़ते थे।तांगे से सभा की सूचना के साथ यह भी सूचना दी जाती थी कि नरेंद्र सिंह तोमर गीत सुनाएंगे।उनकीलिखी चार किताबों लड़े चलो, बड़ेचलो, आजाद हिंद गीतावली और गांधी गीतावली की लोकप्रियता ऐसी थी कि अंग्रेजों ने गांधी गीतावली के गीतों को भड़काऊ मानते हुए को प्रतिबंधित कर दिया था।आकाशवाणी के पास उनके गाए 600 गीतों का कलेक्शन तो है ही, बीबीसी लंदन ने उनसे 150 घंटों की बातचीत-गीत आदि रिकार्ड किए हैं।
इंदौर से 22 किमी दूर पिवड़ाय गांव वाले नरेंद्र सिंह तोमर के जन्म को लेकर भी किस्सा जुड़ा है।परिवार में सात बच्चे जन्मे लेकिन एक नहीं बचा।इनके माता-पिता को गांव के बुजुर्ग ब्राह्मण ने सलाह दी अब जो बच्चा हो उसे किसी मुस्लिम परिवार को दान कर देना।इनका जन्म हुआ तो फकीरों के मोहल्ले में जुम्मा शाह चाचा को दान कर दिया।उन्होने नाक छिदवाने के साथ ही नत्थ सिंह नाम रख दिया।कुछ समय बाद इनके दूसरे भाई मोहन सिंह का जन्म हुआ।तोमर परिवार ने उन्हें सब तरह का सवा मन अनाज, सवा तोला चांदी आदि भेंट कर नत्थू को खरीदा।पीर-फकीर की उस दरगाह की देखरेख और परिवार में शुभ कार्य होने पर पूजा आदि आज भी तोमर परिवार करता है।
🔹फेसबुक से साभार