अकादमिक लेखन के लिए वस्तुनिष्ठता आवश्यक है - प्रो. शैलेन्द्र शर्मा


उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय की डॉ. अम्बेडकर पीठ द्वारा आयोजित त्रिदिवसीय अकादमिक लेखन शोधार्थियों के लिये सार्थक प्रयास है। शोधार्थियों के लिए यह कार्यशाला बहुपयोगी सिद्ध होगी। इस कार्यशाला से शोधार्थियों के ज्ञान क्षेत्र में विस्तार होगा। शोध तकनीकी की बारीकियों से परिचित होंगे। शोधार्थियों को शोध के व्यवसायीकरण से बचना होगा, अकादमिक लेखन में सजग होना होगा। शोध की पवित्रीकरण ही श्रेष्ठ शोध का मानक है, जिसमें भाषा अनौपचारिकता, सुस्पष्टता, संक्षिप्तता और वस्तुनिष्ठता अनिवार्य होती है।
उक्त विचार विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक व विभागाध्यक्ष हिन्दी अध्ययनशाला के प्रो. शैलेन्द्र शर्मा ने डॉ. अम्बेडकर पीठ द्वारा आयोजित त्रिदिवसीय 'अकादमिक लेखन की कार्यशाला के समापन सत्र के मुख्य अतिथि वक्तव्य में कही। प्रो. शर्मा ने कहा अकादमिक लेखन मूल्यांकनपरक दृष्टि से किया जाना चाहिए, जिसमें तार्किकता का समावेश आवश्यक है। अकादमिक लेखन में कार्यकारण को जाना महत्त्वपूर्ण है। जटिल से जटिल विचारों का सरलीकरण 'अकादमिक लेखनकी विशेषता है।
कार्यशाला में 20 शोधार्थियों की प्रतिभागिता रही है जो क्रमश: अंग्रेजी, हिन्दी, प्रबंधन, इतिहास, मानव अधिकार, सांख्यिकी व समाजकार्य के शोधार्थी थे। आठ तकनीकी सत्र सम्पन्न हुए। जिनसे विषय-विशेषज्ञ के रूप में एम.आई.एस.एस.आर. के निदेशक प्रो. यतीन्द्र सिंह सिसौदिया, डॉ. तापस दलपति, अंग्रेजी अध्ययनशाला के डॉ. बी.के. आंजना, डॉ. रूबल वर्मा, सांख्यिकी अध्ययनशाला के डॉ. राजेश टेलर व शासकीय उत्कृष्ट कन्या महाविद्यालय दशहरा मैदान की डॉ. नीता तपन ने 'अकादमिक लेखनकी विस्तृत, ज्ञानवर्धक, शोधपरक व वैज्ञानिक पक्षों के शोधार्थियों से चर्चा की।
स्वागत भाषण प्रभारी निदेशक डॉ. एस.के. मिश्रा ने दिया। कार्यशाला अनुभव प्रबंधन की शोधार्थी एनी जैन व समाजकार्य के शोधार्थी अखिलेश त्रिपाठी ने साझा किए। एम.आई.एस.एस.आर.के. डॉ. तापस दलपति व डॉ. राजेश टेलर विशेष रूप से उपस्थित थे। समापन सत्र का संचालन, कार्यशाला प्रतिवेदन और आभार शोध अधिकारी डॉ. निवेदिता वर्मा ने दिया।