नाटक वाकई बहुत प्रभाव छोड़ता है लगता है ऐसे वाक़य हमारे साथ कई बार घट चुके हैं।

डॉ. भीमराव अम्बेडकर नाट्य समारोह की द्वितीय संघ्या पर मंटो की कहानी पर आधारित नाटक पांच दिन जिसका नाट्य रूपांतरण एवं निर्देशन किया सुश्री पूजा गुप्ता। प्रस्तुति तृषा नाटय एवं लोककला समिति भोपाल द्वारा दी गई जिसमें 'दिल की एक जायज़ ख़्वाहिश की मौत बहुत बड़ी मौत है इंसान का मरना कुछ नहीं लेकिन उसकी फ़ितरत को हलाक़ करना सबसे बड़ा ज़ुल्मÓ 'अफ़सानानिगार सआदत हसन मंटो की उर्दू कहानी 'पांच दिनÓ जो हमें एक औरत के दर्दनाक दिनों से लेकर उसके ख़ूबसूरत दिनों को दिखाती है, और उसके उन्हीं ख़ूबसूरत दिनों में से हैं वो, 'पांच दिनÓ जिसमें इकबालिया बयान है।

सिनेटोरियम से होती हुई कहानी धीरे-धीरे अतीतावलोकन में जाती है जहां सकीना से जुड़े सारे कि़रदार नज़र आने लगते हैं, पाकिस्तान के लाहौर की सड़कों पर उसका बेचारगी से भटकना, कभी अपनी इज़्ज़त बचाती फिरती तो कभी भूख से खाने की अहमियत को समझती। वाकई मंटो ने औरतों की नब्ज़ को अच्छे से टटोला कि सोने-चांदी का कोई ज़ेवर होता तो शायद लोगों की नज़रों से बचा लेती, लेकिन वो एक ऐसी चीज़ की हिफाज़त कर रही थी जिस पर कोई भी आसानी से हाथ मार सकता था, ऐसा सच में होता है गिद्धों की नज़रें हमें घूरने या हमारे पर कुचलने में ज़रा भी नहीं सोचते।

लेकिन इन्हीं गिद्धों में कोई एक फ़रिश्ता भी होता है जो सच में अपने इकबालिया बयान में अपने मन का वास्तविक भाव को बताता है फ़िर चाहे अपने तसव्वुर में सकीना को चूमना हो या फ़िर अपनी भावनाओं कई कई बार दबाना हो।

नाटक वाकई बहुत प्रभाव छोड़ता है लगता है ऐसे वाक़य हमारे साथ कई बार घट चुके हैं।

इसे एक प्रेम कहानी का नाम देना न्याय नहीं होगा बल्कि उस भाव को जो प्रोफेसर स्वीकारता है पता नहीं वो प्रेम से भी बढ़कर है।

नाटक में परिवेश, देशकाल, समय, भाषा और पहनावे को ध्यान में रखकर बारीकी से काम किया गया है।

जैसे इसमें बंगला बाउल गान को लिया है जो हमें अपने किसी ख़ास की याद दिलाता, उससे जोड़ने की कोशिश करता है।

निर्देशिका ने मंटो की कहानी को नाट्यरुपांतरित कर एक प्रयोग किया और ये प्रयोग कितना सफल हुआ ये तो दर्शकों की तालिया ही बता रही थी परन्तु कई बार नाटक ऐसा लगता नजर आया कि नाटक थम गया जिसकी जरूरत ही थी, मगर एक बात ज़रूर ये नाटक शुरू से लेकर अंत तक दर्शकों को बांधे रखता है, कभी ख़ुद के मरने का आभास, तो कभी ख़ुद को बचाने की छटपटाहट तो कभी एक सुकून भरा शुक्रिया नज़र आता है।

सकीना 1- पूजा गुप्ता सकीना के पत्र में न्याय करती नजर आई वही हरगोविंद तिवारी मंटो के पात्र में कहीं कहीं दर्शकों बांध नहीं पाये

सकीना 2- पुष्पलता सांगड़े ने अपने अभिनय से पात्र को जीवंत रखा

प्रोफेसर- जैकी भावसार, गोविंद- देवेंद्र पहाड़े 

पदमा- विभा परमार, चाचा- देवेंद्र दुबे, रेपिस्ट- अभिषेक किरार, हलवाई- आशीष राजपूत, अन्य सहायक पात्र- नीतीश, तन्मय कलाकारों ने अभिनय से पात्रों को बखूबी निभाया। समीक्षक जगरूप सर