उज्जैन। लोककल्याणकारी सरकार अपने नागरिकों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने के लिए हर तरह के प्रयास करती आई है। राज्य सरकार द्वारा वर्षों से विभिन्न क्षेत्रों में तालाबों, बांधों, डेमो का निर्माण कर किसानों की उपज बढ़ाने का काम किया गया है। सन 1974 में महिदपुर तहसील के काजी खेड़ी जलाशय का निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ और 78 में पूर्ण हो गया ।बीते वर्षों में इस जलाशय ने अपनी उपयोगिता सिद्ध करते हुए क्षेत्र के कोई 10 गांव के किसानों की माली हालत में तब्दीली ला दी है।
जहां इस क्षेत्र में कभी गेहूं चना नहीं होता था वहां आज किसान सौ-सौ, दो-दो सौ क्विंटल गेहूं पैदा कर रहे हैं। इस बार की बारिश ने जब जलाशय को 36 फीट ऊंचाई तक पूर्ण क्षमता से भर दिया तो किसानों के जीवन में खुशी लाने के लिए जलाशय का पानी नहर में दौड़ पड़ा। वहीं इसके उलट गत वर्ष पानी नहीं होने के कारण एक भी पलेवा किसानों को नहीं मिला था।
40 साल से बना है टस से मस नहीं हुआ
काजी खेड़ी जलाशय के बारे में बात करते हुए यहां के चौकीदार भेरूसिंग जो बरसों से यही काम कर रहे हैं बताते हैं "डेम इतना मजबूत है साहब कि 40 साल से बना हुआ है पर टस से मस नहीं हुआ है", जबकि इसके बाद के बने हुए कई डेमो में दरारें आ गई, कई बह गए, लेकिन यह जहां का तहां खड़ा है। इस डेम ने अपनी उपयोगिता भी सिद्ध कर दी है। सिंचाई का इतना सस्ता पानी और कहीं मिल नहीं सकता है। किसानों से मात्र 90 रुपये प्रति एकड़ का भुगतान जल संसाधन विभाग द्वारा लिया जाता है और उन्हें भरपूर पानी उपलब्ध करवाया जाता है। भैरू सिंह बताते हैं कि लगभग 7 से 8 किलोमीटर के रेडियस में इस जलाशय से सिंचाई होती है। इस जलाशय ने काजीखेड़ी, आमलीखेड़ी, पीपलखेड़ा, खेरिया खजूरिया, बनी, महिदपुर कस्बा, खेड़ा, मोदीखेड़ा जैसे गांव की तस्वीर बदल दी है। इतना अनाज यहां पहले कभी नहीं होता था अब किसानों के घर अनाज से भरे रहते हैं। इस डेम क्षेत्र में आने वाले प्रत्येक गांव में लोगो के पक्के मकान बन गए हैं। घरों में गाड़ियां हैं, यही नहीं यहां पर भूमिहीन रोजगार करने वाले मजदूरों की माली हालत में परिवर्तन आया है। उनके हाथ में भी रुपया बना रहता है। काजीखेड़ी डेम से आए सम्पूर्ण परिवर्तन का अध्ययन तो कोई सामाजिक एवं आर्थिक विशेषज्ञ करेगा किंतु यह बात तय है कि जब गांव में पानी आता है तो निश्चित रूप से परिवर्तन लाता है और वह परिवर्तन अब यहां वहां दिखाई देता है।