मिलिये चिन्तामन जवासिया के नवाचारी और प्रगतिशील किसान निहालसिंह से, नियमित फसलों के साथ उगा रहे काला गेहूं, डायबिटिज और कैंसर जैसे रोगों से बचाता है काला गेहूं,

कुछ दूरी पर स्थित ग्राम चिन्तामन जवासिया में रहने वाले 48 वर्षीय किसान निहालसिंह आंजना पिता करणसिंह आंजना खेती में पारम्परिक फसलों के साथ-साथ नवाचार करते हुए उन्नत नस्लों को भी तरजीह दे रहे हैं। इनमें गेहूं, चने और सोयाबीन की कुछ फसलें ऐसी हैं जो कई गंभीर बीमारियों जैसे कैंसर व डायबिटिज से बचाव तो करती ही हैं, साथ ही रोग प्रतिरोधक व पाचन क्षमता को भी बढ़ाती हैं। इनमें जापान का काला और बैंगनी गेहूं, सोयाबीन और ऑस्ट्रेलिया का काला चना प्रमुख हैं।
 काला गेहूं मुख्य रूप से जापान के कृषि वैज्ञानिकों द्वारा इजाद किया गया था। मोहाली पंजाब में स्थित राष्ट्रीय कृषि खाद्य जैव प्रौद्योगिकी संस्थान द्वारा जापान के काले व बैंगनी गेहूं को आयात कर भारतीय गेहूं से क्रॉस करवाकर नई किस्म तैयार की गई है। इसका नाम नाबीएमजी है। बाजार में यह काले और बैंगनी गेहूं के नाम से प्रचलित है।
 उज्जैन के किसान निहालसिंह ने वर्तमान में अपनी दो बीघा जमीन में काला गेहूं बोया है। इसमें से लगभग 20 से 25 क्विंटल की उपज होगी। जो लोग काले गेहूं का महत्व और अहमियत जानते हैं वे निहालसिंह से सम्पर्क कर उनके खेत में पहुंचकर उनकी उपज खरीद लेते हैं। पिछले वर्ष निहालसिंह ने काला गेहूं लगभग 15 हजार रुपये क्विंटल के हिसाब से बेचा था। निहालसिंह जिले और प्रदेश के अन्य किसानों से भी सतत सम्पर्क में रहकर उन्हें काला गेहूं उगाने के लिये प्रेरित करते हैं तथा इसके बीज उपलब्ध कराते हैं।
 इसी तरह निहालसिंह ने आधा/पौन बीघा जमीन में ऑस्ट्रेलिया के काले चने की फसल बोई है, जो पाचन शक्ति को बढ़ाता है। यह चना बाजार में सौ रुपये प्रतिकिलो के भाव से बिक रहा है। निहालसिंह ने कहा कि जैसे-जैसे इन फसलों की मांग बढ़ेगी, वैसे-वैसे वे इनका रकबा अपने खेत में बढ़ाते जायेंगे। निहालसिंह ने इसी प्रकार सोयाबीन की ही एक अन्य उन्नत नस्ल भी बोई थी, जो एक सब्जी की तरह खाई जाती है। यह पौष्टिक तत्वों से भरपूर है, साथ ही रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाती है। पिछले साल ये सोयाबीन जापान तक में बिक्री के लिये गई थी। निहालसिंह ने इस सोयाबीन को जापान के व्यापारियों को 500 रुपये प्रतिकिलो के भाव से बेचा था।
 निहालसिंह एक समृद्ध किसान हैं। उनकी सफलता का मुख्य कारण ही यही है कि उन्होंने कभी भी खेती में नये प्रयोग करने से संकोच नहीं किया। थोड़ा बहुत जोखिम तो हर काम में होता है, परन्तु निहालसिंह ने हमेशा दूरदर्शिता से सोचते हुए लगातार खेती में प्रयोग किये। वे अक्सर किसान प्रदर्शनी और राष्ट्रीय स्तर के किसान सम्मेलनों में सहभागिता करते हैं। कृषि विस्तार अधिकारी और कृषि वैज्ञानिकों द्वारा समय-समय पर जारी सलाह को हमेशा अमल में लाते हैं। इसी की बदौलत आज उनकी खेती में जोखिम का अनुपात काफी हद तक कम हुआ है।
 हाल ही में 2 नवम्बर को आयोजित मध्य प्रदेश स्थापना दिवस के समारोह के अवसर पर खेती में नवाचार करने के लिये संभागायुक्त श्री अजीत कुमार, कलेक्टर श्री शशांक मिश्र और पुलिस अधीक्षक श्री सचिन अतुलकर द्वारा निहालसिंह को सम्मानित कर प्रशस्ति-पत्र प्रदान किया गया था। निहालसिंह को इससे पहले गोपाल पुरस्कार और आत्मा का 2011 में जिले के सर्वोत्तम कृषक पुरस्कार भी प्राप्त हो चुका है। निहालसिंह दूरदर्शन के चौपाल चर्चा कार्यक्रम में भी किसानों से अपने अनुभव साझा कर चुके हैं।
 देश के विभिन्न राज्यों, यहां तक कि विदेशों के भी किसान और कृषि वैज्ञानिक निहालसिंह के खेत और उपज का जायजा लेने के लिये उनसे मिलने आते रहते हैं। निहालसिंह उन सभी प्रगतिशील किसानों के लिये प्रेरणा बन चुके हैं, जो खेती में नवाचार कर इसे लाभ का व्यवसाय बनाने की ओर अग्रसर हैं। यदि सुव्यवस्थित ढंग से की जाये तो खेती से किसान मनचाहा लाभ कमा सकते हैं। इसका जीता-जागता उदाहरण है निहालसिंह।
 निहालसिंह के पास लगभग 80 बीघा कृषि भूमि है। साथ ही पर्याप्त संख्या में पशुधन भी है। रबी के मौसम में हर वर्ष निहालसिंह फसलों में परिवर्तन करते रहते हैं। इससे फसल चक्र बना रहता है। निहालसिंह यह पहले ही तय कर लेते हैं कि कितने रकबे में कौन कौन-सी फसल बोनी है। वर्तमान में निहालसिंह ने गेहूं और चने की विभिन्न किस्में, आलू, लहसुन और प्याज बोया है। निहालसिंह अन्य किसानों को समय-समय पर उन्नत और नवीन किस्मों की जानकारी देते रहते हैं। प्राकृतिक आपदा को यदि छोड़ दिया जाये तो निहालसिंह को प्रतिवर्ष खेती में 10 लाख रुपये तक का लाभ प्राप्त हो जाता है।
 पशु संवर्धन के मामले में निहालसिंह आसपास के गांव में पशुओं का दूध विक्रय करते हैं और स्वयं की खेती के लिये गोबर से बनी खाद और गोमूत्र से बने टॉनिक का इस्तेमाल करते हैं। निहालसिंह ने अपने खेत में बायोगैस प्लांट सन 1985 से बना रखा है। गौरतलब है कि निहालसिंह के घर में आज भी भोजन बनाने में गोबर से बने कंडों और गोबर गैस का उपयोग किया जाता है, एलपीजी का नहीं। निहालसिंह ने पिछले तीन-चार सालों से जैविक खेती को पूरी तरह अपना लिया है। कृषि विभाग के द्वारा जारी सलाह को मानकर उन्हें आशा अनुरूप परिणाम भी मिले हैं। गोबर और गोमूत्र से बनी खाद का उपयोग करने पर यूरिया पर निर्भरता भी कम हुई है। गोमूत्र से निहालसिंह कीटनाशक टॉनिक भी अपने खेत पर ही बनाते हैं।
 निहालसिंह नरवाई को कटवाकर उसे पलटी प्लाऊ करवाते हैं, जिससे बनी खाद अगली फसल के लिये वरदान साबित होती है। निहालसिंह खेती में आधुनिक कृषि यंत्रों के उपयोग के साथ-साथ परम्परागत बैलों की मदद से भी जुताई करते हैं। निहालसिंह ने यह साबित कर दिया है कि किसान यदि थोड़े से जागरूक बने और नये तरीकों को अपनाये तो खेती में उन्नति के नये आयाम छू सकते हैं।


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