उज्जैन ।उज्जैन के तराना से कुछ दूरी पर एक गांव आता है कड़ाई। गांव से ठीक पहले बांये तरफ से एक कच्चा रास्ता होकर जाता है ऐसी जगह, जहां चारो तरफ लहलहाती फसलें हैं, फलदार वृक्ष हैं, पशुओं का बाड़ा है, खुशहाली है, समृद्धि है, सम्पन्नता है और खेतों के बीचोंबीच एक बड़ा-सा मकान है। ये मकान है 65 वर्षीय रामसिंह पिता मोतीसिंह का। इनकी आजीविका का मुख्य साधन सिर्फ और सिर्फ एकीकृत खेती है। पहले के जमाने में एक कहावत हुआ करती थी “उत्तम खेती, मध्यम बान” इस कहावत को पूरी तरह चरितार्थ किया है रामसिंह ने। उन्होंने ये साबित कर दिया है कि यदि व्यवस्थित और सुसंगत तरीके से की जाये तो आज भी खेती ही आजीविका का उत्तम साधन बन सकती है।
एकीकृत खेती कैसे की जाती है, यह जानना हो तो एक बार रामसिंह के फार्म पर अवश्य आयें, क्योंकि इसी के बदौलत रामसिंह प्रतिवर्ष 20 लाख रुपये का मुनाफा कमा रहे हैं। रामसिंह और उनका परिवार जिसमें पत्नी, तीन बेटे, बहू और पोते-पोतियां शामिल हैं, सभी मिलकर यही कार्य किया करते हैं। रामसिंह अन्य सभी किसानों के लिये एक मिसाल भी है और प्रेरणास्त्रोत भी। देश के अन्य राज्य जैसे गुजरात, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र और राजस्थान के किसान रामसिंह के खेत पर भ्रमण करने के लिये आते हैं और उनके खेती के तरीकों को सीखकर अपने यहां लागू करते हैं। रामसिंह की प्रसिद्धी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें अपनी उपज को बेचने के लिये बाहर किसी मंडी में नहीं जाना पड़ता, बल्कि उनके खेत पर उपज खरीदने के लिये लोग आते हैं।
रामसिंह के पास 90 बीघा कृषि भूमि है, जहां पूर्ण रूप से जैविक खेती की जाती है। रबी और खरीफ दोनों मौसम में फसलों का चक्रीकरण किया जाता है, जिससे खेत की मिट्टी का उपजाऊपन बना रहता है। वर्तमान में रामसिंह ने 18 बीघा में चने की तीन किस्में डॉलर, विशाल और उज्जैन-21, 40 बीघा में गेहूं की चार किस्में पूर्णा, मंगल, लोकवन और जीयू-322, सात बीघा में प्याज और दो बीघा में लहसुन और मसूर लगा रखी है। इसके अलावा कुछ बीघा में उन्होंने उद्यानिकी में सन्तरे, नींबू, आम और अनार के वृक्ष लगा रखे हैं।
रामसिंह के पास पर्याप्त संख्या में पशुधन भी है, जिनमें 10 मुर्रा नस्ल की भैंसें, आठ गिर नस्ल की गाय, एक सांड, एक भैंसा और तकरीबन एक दर्जन बछड़े हैं। पशुधन से पर्याप्त मात्रा में उन्हें दूध की प्राप्ति तो होती ही है साथ ही गोबर और गोमूत्र से जैविक खाद भी वे खेत पर ही बनाते हैं। रामसिंह के दूसरे पुत्र कृष्णपालसिंह ने उनका दूध का पूरा व्यवसाय संभाल रखा है। कृष्णपालसिंह ने बीबीए किया है, लेकिन वे अपनी शिक्षा का उपयोग अपने पुष्तैनी व्यापार और व्यवसाय को बढ़ाने में करना चाहते हैं। कृष्णपाल आसपास के गांव में दूध और अन्य उत्पाद बेचने के लिये जाते हैं। उन्होंने इसके लिये एक सोसायटी भी बना रखी है।
रामसिंह के फार्म पर भ्रमण के दौरान कृषि विभाग के उप संचालक श्री सीएल केवड़ा, श्री कमलेश राठौर, वरिष्ठ कृषि विस्तार अधिकारी श्री एमएस तोमर और ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी श्री अविनाश गुजराती मौजूद थे। श्री केवड़ा ने बताया कि रामसिंह को आधुनिक कृषि यंत्र और उपकरण क्रय करने के लिये शासन की योजना अनुसार विभाग द्वारा अनुदान राशि उपलब्ध करवाई गई है। वर्तमान में रामसिंह के पास सीड ड्रीलर, वेप कटर, थ्रेशर, रोटावेटर और मेढ़िया मशीन है। वेप कटर से हरा चारा काटे जाने पर और उसे ठोस आहार में मिलाने के बाद पशु बड़े चाव से खाते हैं, जिससे दुग्ध का उत्पादन भी बढ़ता है। रामसिंह ने बताया कि प्रतिदिन उनकी गाय और भैंसें लगभग 60 से 70 लीटर दूध देते हैं।
ये रामसिंह की लगन और अपने व्यवसाय को निरन्तर आगे बढ़ाने की तीव्र इच्छा से ही संभव हो पाया है। रामसिंह और उनके परिवार ने खेती में उद्यमिता और व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिये आधुनिक तकनीक का उपयोग किया है। उनके छोटे बेटे ने अपने मोबाइल में कृषि मित्र एप भी डाउनलोड किया है, जिसके माध्यम से वे कृषि क्षेत्र से जुड़ी आधुनिक जानकारियां समय-समय पर प्राप्त करते रहते हैं। दूध एवं अन्य पशु उत्पादों जैसे गोबर से बनाये गये कंडे और गोमूत्र के विक्रय के साथ-साथ वे उन्नत नस्ल के नये बछड़े भी ब्रीडिंग के माध्यम से तैयार करते हैं, जिन्हें बेचकर समय-समय पर उन्हें अच्छा लाभ प्राप्त होता है।
रामसिंह को पिछले दिनों पशुपालन में नवाचार और उन्नत कार्य हेतु गोपाल पुरस्कार भी मिल चुका है। कृषि विभाग के श्री कमलेश राठौर ने जानकारी दी कि आत्मा की तरफ से भी पूर्व में रामसिंह को ब्लॉक स्तर पर सर्वोत्तम कृषक का पुरस्कार प्राप्त हो चुका है।
श्री सीएल केवड़ा ने बताया कि रामसिंह को मुख्यमंत्री खेत तीर्थ योजना में भी नामांकित किया गया है। रामसिंह जिले के उन श्रेष्ठ, उन्नत व नवाचारी किसानों से शामिल हैं, जिन्होंने खेती को लाभ का धंधा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
रामसिंह समय-समय पर खेती में नये-नये प्रयोग भी कृषि विभाग की सलाह पर करते रहते हैं। वे कहते हैं कि रोटावेटर के उपयोग से नरवाई जलाने की नौबत नहीं आती है। इससे वायु प्रदूषण भी नहीं होता है और खेतों की उर्वरता भी बनी रहती है। रामसिंह अपने गांव के आसपास के अन्य किसानों को भी इसके लिये निरन्तर प्रेरित करते रहते हैं।
रामसिंह ने अपने फार्म में बायोगैस प्लांट भी निर्मित किया है, जिसमें बनी बायोगैस भोजन बनाने के उपयोग में लाई जाती है। वर्तमान में वे सोलर पैनल लगाये जाने पर भी विचार कर रहे हैं। उनका कहना है कि ये ऊर्जा के प्राकृतिक स्त्रोत हैं, जो कभी भी समाप्त नहीं होते। इनके ऊपर निर्भरता बढ़ाने से पेट्रोल, डीजल, बिजली और एलपीजी की काफी हद तक खपत कम की जा सकती है।
रामसिंह खेती में सिंचाई के लिये स्प्रींकलर ड्रीप सिस्टम का उपयोग करते हैं। इससे कम पानी में अधिक क्षेत्र की सिंचाई संभव हो पाती है। रामसिंह फसल की कटाई में हार्वेस्टर का उपयोग नहीं करते, बल्कि मेन्युअल कटिंग करवाते हैं। इससे बचा हुआ चारा पशुओं के खाने के काम आता है। रामसिंह बताते हैं कि उन्हें कभी भी पशुओं के लिये चारा बाहर से नहीं खरीदना पड़ता। उन्हें खेत से ही काफी तादाद में चारा प्राप्त हो जाता है। चारा पशुओं को दिया जाता है, पशु उसे खाते हैं। इसके बाद जो गोबर करते हैं, उससे खाद बनाई जाती है। जो वापस खेतों में पहुंच जाती है। जैविक खाद से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और कम क्षेत्र में अधिक फसल होती है। इस प्रकार एक जैविक चक्र का निर्माण होता है, जो निरन्तर चलता रहता है। यहां तक कि रामसिंह फसलों को कीटों से बचाने के लिये कीटनाशकों का उपयोग भी न के बराबर करते हैं। कंडों को जलाने के बाद बची हुई राख तक का उपयोग वे लहसुन और प्याज की फसल पर छिड़कने में करते हैं। इससे फसलों पर कीटों का प्रकोप नहीं होता है।
रामसिंह फसलों के साथ-साथ पशुधन का भी उतना ही ख्याल रखते हैं। उन्होंने अपने समस्त पशुओं का बीमा करवा रखा है। पशुओं को नियमित दिये जाने वाले पौष्टिक आहार में वे कोई समझौता नहीं करते। पशुओं के बाड़े में साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है तथा समय-समय पर उन्हें पशु चिकित्सक के पास स्वास्थ्य परीक्षण के लिये ले जाया जाता है। इसी वजह से उनका एक पशु का बछड़ा लगभग 50 से 60 हजार रुपये में बिकता है।
रामसिंह खाद बनाने में वर्मी कम्पोस्ट चेम्बर का उपयोग करते हैं, जहां पहले खाद को ठण्डा किया जाता है, उसके पश्चात सीधे फसलों पर छिड़का जाता है। इससे फसल पर इल्लियां भी नहीं पड़ती।
श्री सीएल केवड़ा ने बताया कि जब उन्होंने रामसिंह के खेत का निरीक्षण किया तो पाया कि उनके खेत में फसलों में आमतौर पर होने वाली विल्ट डिसीज कहीं भी नहीं है। यह एक प्रकार का फंगल इंफेक्शन होता है, जिसमें फसलों के पत्ते गलने लगते हैं। इसके लिये यहां पर ट्राइकोडर्मा सोल्यूशन का उपयोग रामसिंह विभाग की सलाह पर करते हैं।
फसलों के इतने अच्छे रख-रखाव के कारण ही रामसिंह के खेत में फसलों का लेवल एक जैसा रहता है। रामसिंह साइलोफिट चेम्बर के माध्यम से हरे चारे को अधिक समय तक संरक्षित रख पाते हैं। इसके लिये वे चारे को काटकर उसकी कुट्टी बनाकर उस पर ट्रेक्टर चलवाते हैं। इसके बाद उन कुट्टियों को उक्त चेम्बर में रखा जाता है।
श्री केवड़ा ने बताया कि रामसिंह बुवाई के दौरान बीजों का अनुपात कम रखते हैं। एक बीज से बहुत सारे पौधे निकलते हैं, जिससे बीज व्यर्थ नहीं जाते। फसलों के बीज भी रामसिंह खुद ही उत्पादित करते हैं। इस प्रकार एक बीघा में अन्य किसानों की तुलना में वे मात्र 25 किलो बीज की बुवाई ही करते हैं, जिससे पर्याप्त मात्रा में फसल उत्पन्न होती है। उनके द्वारा बीजों की बुवाई भी 10 से 15 दिनों के अन्तराल में की जाती है, जिससे मजदूरी की लागत भी कम आती है।
सिंचाई के लिये रामसिंह के खेत में तकरीबन 80 फीट गहरा एक कुआ है, जिसमें तीन ट्यूबवेल लगे हुए हैं। रामसिंह ने बताया कि वे लगभग 2012 से कृषि विभाग से सतत सम्पर्क में हैं और विभाग द्वारा समय-समय पर दी जाने वाली सलाहों को अपनाकर ही वे आज इस मुकाम पर पहुंचे हैं। रामसिंह को ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी श्री अविनाश गुजराती से ही ऑर्गेनिक फार्मिंग की प्रेरणा मिली। साथ ही उन्होंने राइजोबियम जीवाणु का महत्व भी समझा। कृषि विभाग द्वारा उन्हें नाइट्रोजन फिक्सिंग बैक्टिरिया राइजोबियम का कल्चर बनाना सीखाया गया। दरअसल यह एक प्रकार का जीवाणु होता है, जो प्राकृतिक रूप से पौधों की जड़ों में वातावरण की नाइट्रोजन पहुंचाता है।
रामसिंह के खेत में बीजों की ग्रेडिंग भी मशीन के माध्यम से तैयार की जाती है। कृषि विभाग द्वारा उन्हें फसल को कीड़ों से बचाने के लिये ट्रेप लगाये जाने की भी सलाह दी गई है। ये ट्रेप अत्यन्त वाजिब दरों में विभाग द्वारा उपलब्ध कराई जाती है। कृषि विभाग द्वारा समय-समय पर दिये गये सहयोग की बदौलत ही रामसिंह आज इतने बड़े फार्म का संचालन निर्विघ्न रूप से कर पा रहे हैं। इसके लिये वे कृषि विभाग के अधिकारियों, स्टाफ और शासन का आभार व्यक्त करते हैं।