उज्जैन। मुंशी प्रेमचंद की कहानी के नाट्य रूपांतरण तथा शरद बिश्नोई के निर्देशन व अभिनय से सजे ‘बड़े भाई साहब’ और हरिशंकर परसाई द्वारा लिखे तथा शरद बिश्नोई द्वारा निर्देशित ‘इंस्पेक्टर मातादीन चांद पर’ का मंचन शनिवार शाम कालिदास अकादमी अभीरंग नाट्य गृह में हुआ। इंस्पेक्टर मातादीन चांद पर में शरद बिश्नोई के साथ सार्थक कोहली, सोहैल तनवीर ने अपने अभिनय को बखूबी निभाया। अभिनव रंगमंडल द्वारा आयोजित नाट्य मंचन में बड़े भाई साहब ने समाज में समाप्त हो रहे, कर्तव्यों के अहसास को दुबारा जीवित किया तो भारतीय पुलिस व्यवस्था को लेकर करीब 40 वर्ष पूर्व हरिशंकर परसाई द्वारा लिखी गई कथा ‘इंस्पेक्टर मातादीन चाँद पर’ ने पुलिस के रवैये के कारण आधुनिक भारतीय लोकतंत्र के सर्वाधिक अंधेरे पक्ष को उजागर किया।
अभिनव रंगमंडल प्रमुख शरद शर्मा के अनुसार नाट्य मंचन का शुभारंभ सुधा शर्मा, पंखुरी वक़्त जोशी, चेतना, नसीम भटनागर द्वारा दीप प्रज्जवलन कर किया गया। नाटक में बड़े भाई साहब अपने कर्तव्यों को संभालते हुए, अपने भाई के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरा कर रहे हैं। उनकी उम्र इतनी नहीं है, जितनी उनकी ज़िम्मेदारियाँ है। लेकिन उनकी ज़िम्मेदारियाँ उनकी उम्र के आगे छोटी नज़र आती हैं। वह स्वयं के बचपन को छोटे भाई के लिए तिलाजंलि देते हुए भी नहीं हिचकिचाते हैं। उन्हें इस बात का अहसास है कि उनके गलत कदम छोटे भाई के भविष्य को बिगाड़ सकते हैं। वह अपने भविष्य के साथ खिलवाड़ करने से भी नहीं चूकते। एक चौदह साल के बच्चे द्वारा उठाया गया कदम छोटे भाई के उज्जवल भविष्य की नींव रखता है। यही आदर्श बड़े भाई को छोटे भाई के सामने और भी ऊँचा बना देते हैं। यह कहानी सीख देती है कि मनुष्य उम्र से नहीं अपने किए गए कामों और कर्तव्यों से बड़ा होता है। वर्तमान युग में मनुष्य विकास तो कर रहा है परन्तु आदर्शों को भुलता जा रहा है। भौतिक सुख एकत्र करने की होड़ में हम अपने आदर्शों को छोड़ चुके हैं। हमारे लिए आज भौतिक सुख ही सब कुछ है। अपने से छोटे और बड़ों के प्रति हमारी ज़िम्मेदारियाँ हमारे लिए आवश्यक नहीं है। प्रेमचंद ने इन्हीं कर्तव्यों के महत्व को सबके सम्मुख रखा है।
अक्सर दोहराया जाता है कि समाज में पुलिस का खौफ खत्म होता जा रहा है। जबकि खौफ फैलाने की आवश्यकता नहीं बल्कि पुलिस में भरोसा बनाने की है। ‘इंस्पेक्टर मातादीन चांद पर’ ने बताया कि अराजकता को खौफ से नहीं भरोसे से दूर किया जा सकता है। पुलिस पर राजनीतिक दबाव की बात से इंकार नहीं किया जा सकता। लेकिन आरुषि हत्याकांड की विवेचना, या हैदराबाद में बलात्कार की घटना में समय पर एक्शन नहीं लेना और बाद में अपनी गिरेबान छुड़ाने के लिए अंकॉउंटर, किसी घटना में जबरिया अभियुक्त बनाने में कौन सा और कितना राजनीतिक दबाव काम कर रहा था। वास्तविकता यही है कि पुलिस अब अपनी आलोचना या समीक्षा की ओर ध्यान ही नहीं देना चाहती। वह जिस कार्यप्रणाली की आदी हो गई है, उससे छुटकारा पाने में उसकी कोई रुचि ही नहीं है और दूसरी ओर भारतीय नागरिक समाज पूरी तरह से हताश होकर नैराश्य में डूब चुका है। उसे महसूस हो रहा है कि इस व्यवस्था में अब उसके लिए कुछ भी बाकी नहीं है। यही सब लेखक ने व्यंग्य के माध्यम से समाज के सामने पूरी सटीकता के साथ रखा है। अभिनव रंगमंडल के प्रभारी वीरेंद्र सिंह ठाकुर ने उक्त जानकारी दी।
बड़े भाई साहब’ ने कराया कर्तव्यों का अहसास, ‘इंस्पेक्टर मातादीन चांद पर’ ने बताया पुलिस का रवैया