चिंता दुख का कारक है, दुख अविश्वास से पैदा होता है
जिसे भगवान पर भरोसा है उसे चिंता नहीं सताती - आचार्य आशुतोष शास्त्री 

देवास। चिंता दुख का कारक है, दुख अविश्वास से पैदा होता है, महाभारत में युद्ध के समय अर्जुन के सामने गुरू द्रोणाचार्य, भीष्मपितामह, कर्ण और दुर्योधन सहित 100 कौरव थे मगर अर्जुन को चिंता नहीं थी। क्योंकि अर्जुन के साथ  भगवान थे उसे भगवान पर भरोसा था इसलिए उसे चिंता ने विचलित नहीं किया। यह आध्यात्मिक विचार श्री राधाकृष्ण महिला मण्डल समिति द्वारा आयोजित श्रीमद भागवत ज्ञान गंगा में भागवताचार्य आशुतोष शास्त्री (शुक्ल) जी ने व्यक्त किए।  कथा प्रसंगों में धु्रव चरित्र का वर्णन सुनाते हुए आपने कहा कि माँ चाहे तो अपने बेटे को  कृष्ण बना सकती है, चाहे तो कंस जैसा।  माँ संस्कार देती है बेटा वैसा ही बनता है। सुनीति ने अपने पुत्र धु्रव को ईश्वरीय भक्ति का संस्कार दिया था इसी कारण आज वह इस ब्रह्माण्ड में एक नक्षत्र के रूप में धु्रव तारा बनकर चमक रहा है। संतान के लिए कितना धन संपत्ति छोडकर चले जाओ वो जीवन में कुछ नहीं कर पाएगा मगर संस्कार रूपी धन उसे प्राप्त करवा दिया तो वो आपकी यश, कीर्ति को संसार में फैला देगा। भूखा रहना व्रत नहीं होता , झूठ, व्यविचार को त्यागने का संकल्प ही भगवान की उपासना और सच्चा व्रत होता है। श्रीमद भागवत के प्रत्येेक प्रसंग में छिपे आध्यात्मिक रहस्यों को व्यवहारिक शैली में बड़े ही सुंदर वक्तव्यों के साथ प्रस्तुत करते हुए मनुष्य जीवन के वास्तविक रहस्यों को वैदान्तिक प्रमाणों के साथ प्रकट किया। कथा मेें राजाबली के चरित्र की कथा, भगवान वामन के अवतार का वर्णन, दक्ष प्रजापति द्वारा भगवान शिव का अपमान एवं माता सती की कथा कही।

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