मप्र की कांग्रेस सरकार आदिवासियों को सनातन हिन्दू धर्म से परे कर धर्मान्तरण का कुचक्र रच रही है
 

- आदिवासी समाज के धर्मान्तरण का कुचक्र रचने विषयक को लेकर भारत रक्षा मंच ने दिया ज्ञापन

देवास। मध्यप्रदेश सरकार की कमलनाथ सरकार द्वारा आदिवासी समाज के धर्मान्तरण का कुचक्र रचने को लेकर भारत रक्षा मंच ने शुक्रवार को राष्ट्रपति के नाम जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा। जिलाध्यक्ष नमईश तिवारी ने बताया कि बेहद दुख के साथ ध्यान में लाना पड़ रहा है कि 2021 की जनगणना से पूर्व मप्र की कांग्रेस सरकार आदिवासियों को सनातन हिन्दू धर्म से परे कर धर्मान्तरण का कुचक्र रच रही है। मुख्यमंत्री कमलनाथ के नेतृत्व वाली मप्र सरकार आदिवासियों को जनगणना के दौरान अपने को हिन्दू नहीं लिखने के लिये उकसाने का दुष्कृत्य कर रही है, जबकि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 366 (25) की भाषा-परिभाषा के अर्थों में अनुसूचित जनजाति के सदस्य/नागरिक 'हिन्दूÓ माने जाते हैं। हिंदुओं की जनसंख्या गिनने-गिनाने के लिए भी 'हिन्दूÓ माने-समझे जाते रहे हैं। शास्त्रों, गं्रथों, महाकाव्यों में आदिवासी समाज हमेशा से सनातनी रहे है। त्रेतायुग में भगवान श्रीराम और केवट प्रसंग को देखे तो निषादराज केवट, कीर जाति के थे। राम को प्रेमपूर्वक झुठे बेर खिलाने वाली शबरी भील जनजाति की थी।

करीब 92,300 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले इस दंडकारण्य क्षेत्र का अध्ययन किया जाये तो स्पष्ट होता है कि  जनजाति समाज सनातनी है, जिन्हे एकसुत्र में पिरोते हुए स्वयं वनवासी श्रीराम ने श्रेष्ठ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की शिक्षा दी। वर्तमान में आदिवासियों, वनवासियों और दलितों के बीच जो धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा, रीति और रिवाज हैं वे सभी प्रभु श्रीराम की देन है। भारतवर्ष ही नहीं नेपाल, लाओस, कंपूचिया, मलेशिया, कंबोडिया, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, भूटान, श्रीलंका, बाली, जावा, सुमात्रा और थाईलैंड आदि देशों की लोक-संस्कृति व ग्रंथों में आज भी राम पूज्यनीय है, क्योंकि उन्होने धार्मिक आधार पर संपूर्ण अखंड भारत के दलित और आदिवासियों को एकजुट किया। आदिवासियों में राम और हनुमान को सबसे ज्यादा पूजनीय इसीलिए माना जाता है। रामचरित मानस की रचना करने वाले महर्षि वाल्मिकी भील जनजाति के बीच पले-बढ़े हुए। द्वापरयुग अथवा महाभारत का इतिहास खगाले तो वर्तमान में श्याम बाबा के रूप में जिन बर्बरीक की पूजा होती है, वे वनवासी थे, जिन्होने धर्म का साथ देते हुए भगवान श्रीकृष्ण का कहा मानते हुए अपना शीश दान कर दिया। इसलिये जो  राजनैतिक हानि लाभ को देखते हुए यह भ्रम फैलाते है कि जनजाति समाज सनातनी हिन्दू या मुर्तिपूजक नहीं है, वे विघटनकारी मानसिकता से ग्रसित है। मुगलो के खिलाफ संघर्ष एवं स्वतंत्रता की क्रांति में भी जनजाति समाज का उल्लेखनीय योगदान रहा है।

दुर्भाग्यवश अंग्रेजकाल एवं आजादी के पश्चात वोटबैंक की घृणित राजनीति ने आदिवासी-जनजाति समाज को सनातन हिन्दू धर्म से तोडऩे का लगातार षडय़ंत्र रचा। लोभ-लालच देकर, भड़काकर धर्मान्तरित किया। सत्ता के संरक्षण में आदिवासी क्षेत्रों में ईसाई मिशनरियों ने धड़ल्ले से धर्मान्तरण किया। देखा जाये तो भारतवर्ष में नक्सलवाद की समस्या भी धर्मान्तरण के इसी दुष्चक्र की देन है। मप्र के मुख्यमंत्री कमनलाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार सरकारी संसाधनों का दुरूपयोग एवं प्रशासनिक अधिकारियों पर दबाव बनाकर जनगणना 2021 से पूर्व आदिवासी-जनजाति समाज को सनातन हिन्दू धर्म से प्रथक करने के लिये उकसाने वाला कृत्य करते हुए, इसके लिये आदिवासी समाज के बीच खाट बैठके करने का षडय़ंत्र रच रही है। भारत रक्षा मंच माननीय राष्ट्रपति जी से मांग करता है कि आदिवासी-जनजाति समाज सनातन हिन्दू धर्म से तोडऩे वाली मप्र की कमलनाथ सरकार को बर्खास्त करे, ताकि वह अपने विघटनकारी मंसूबों में कामयाब नहीं हो सके।

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