सोशल डिस्टेंस और इंटरनेट 



  • एक दूजे से शारीरिक या भौतिक रूप में 2 गज या अधिक दूरी कोरोनावायरस से बचाव के एक सूत्र के रूप में है जरूरी , पर समाज की इकाई व्यक्ति व्यक्ति के बीच में बढ़ता अलगाव, छीजते सम्पर्क, परस्पर संबंधों में आता ठंडा पन , रिश्तो में शनैः शनैः जमता बर्फ यानी घटती सामाजिकता बनाम बढ़ता सोशल डिस्टेंस व्यापक व वैश्विक चिंता का रूप धारण करता जा रहा है।कारक है हर दिल अज़ीज इन्टरनेट। कौन नहीं है इसका दिवाना?                 मन मोहिनी, लोक लुभावनी ,खूबसूरत दुनिया का प्रवेश द्वार है इंटरनेट। अपार जानकारियों का महा भंडार है इंटरनेट। क्या हुक्म है मेरे आका ?वाले अंदाज में इंटरनेट का जिन्न हाजिर है पूरी तत्परता से ।एक क्लिक पर अनंत सूचनाओं को तत्काल पहुंचाने के लिए ।पलक झपकते ही । जिंदगी को बेहतर व बेहद सुविधा पूर्ण बनाने में लाजवाब योगदान है इंटरनेट मोबाइल का                  आज तक के वैज्ञानिक आविष्कारों ,उपकरणों ने शायद ही इतना व्यापक प्रभाव समाज पर डाला हो जितना मोबाइल व इंटरनेट ने। छोटे-बड़े ,शिक्षित अशिक्षित ,धनी -निर्धन, हर उम्र ,हर वर्ग ,हर पद ,हर प्रतिष्ठा वाले या सामान्य  ,अति सामान्य सभी इसकी जबरदस्त गिरफ्त में हैं, सम्मोहन में जकड़े हैं।    इंटरनेट क्या है? कंप्यूटरों का संजाल ।नेटवर्क आफ नेटवर्क्स ।इंटर कनेक्टेड नेटवर्क आफ कम्प्यूटर स और समाज? संबंधों का संजाल ।व्यक्ति व्यक्ति के बीच के संबंध  ,परस्पर लगाव ही तो समाज बनाते हैं , नहीं  तो  वह लोगों की भीड़ मात्र है ।समाज  संबंधों  का नेटवर्क कहा जा सकता है  परंतु रिश्तो के इस नेटवर्क पर  ,संबंधों के संजाल पर  यानी समाज पर  ,कंप्यूटर  का यह नेटवर्क यानी संजाल यानी इंटरनेट भारी पड़ रहा है ।इंटरनेट के कारण लोग सामाजिकता ही भूलने लगे हैं ।    हजारों मील दूर के लोग तो इंटरनेट के माध्यम से पास आ गए ,पर पास के लोग ?यहां तक कि एक ही छत के नीचे रहने वाले एक ही परिवार के सदस्यों में बेहद दूरी बनती जा रही है ।परिवार में यदि 4 सदस्य हैं तो सभी के हाथों में मोबाइल चलता हुआ इंटरनेट ।एक दूसरे से कोई बात नहीं ,होठों पर मुस्कराहट तक नहीं ,यहां तक कि नजरें भी उठती नहीं, परिणाम ?अवसाद ....अकेलापन .....।          फेसबुक ,टि्वटर, इंस्टाग्राम, टिक टॉक ,व्हाट्सएप आदि आदि पर आंख गड़ाए, डुबे हुए लोग । कई फुरसतिया लोगों को फुल टाइम बिजी रहने का काम कहां से मिल गया ,सोचो जरा? लेकिन इतने के बाद भी हम समझ नहीं पा रहे हैं कि सैकड़ों दोस्तों के बाद भी आदमी अंदर इतना अकेला क्यों है ?क्यों अनेक बार उदासी हाहाकार करती हुई घेर लेती है ।सच बात तो यह है कि इंटरनेट के द्वारा रचित यह दुनिया यथार्थ दुनिया से बहुत दूर एक अलग ही दुनिया है: आभासी दुनिया ,वर्चुअल वर्ल्ड की दुनिया। लगता है ऐसे जैसे इंटरनेट के सहारे गुजर रही है जिंदगी, जैसे किसी सहारे की कोई आरजू नहीं  ,इंटरनेट रचित यह वर्चुअल वर्ल्ड की दुनिया आभासी दुनिया है, यथार्थ दुनिया से बहुत अलग है ।जरूरत पड़ने पर पास में कोई नहीं ,केवल अकेलापन, डिप्रेशन और डिप्रेशन । सोशल मीडिया में इंटरनेट की इस आभासी दुनिया में बड़ी संख्या में लोग आत्ममुग्ध है अभिव्यक्ति के आनंद के नशे में है कि बिना किसी हुल हील हुज्जत के  ,पलक झपकते ही उनकी अभिव्यक्ति, उनकी बात हजारों के बीच पहुंच जाती है। परंतु जब यह आदत लत बन जाती है ,आलसी व सेहत के प्रति लापरवाह बना देती है ,उनकी फिजिकल एक्टिविटी भौतिक क्रियाकलाप घट जाते हैं ,मोटापा ,ऐडायबिटीज आदि अनेक साइड इफेक्ट घेर लेते हैं तब प्रश्नचिन्ह लगता है ।लाइक और डिसलाइक में डूबते उतराते लोग एक अलग ही आभासी दुनिया के जीव प्रतीत होते हैं।

  •         प्रायः लोगों ने वार- त्योहारों पर एक दूसरे के यहां आना जाना ,मिलना यहां तक कि घड़ी भर के लिए बतियाना तक कम कर दिया है ।जन्मदिन हो या विशेष अवसर केवल मैसेजों के आदान-प्रदान से सारा काम चल रहा है। खरीदी भी ऑनलाइन ,हर काम ऑनलाइन  एक जगह मूक बैठा व्यक्ति, उंगलियों से बटन दबाता ,आभासी दुनिया में खोया विचरण करता ,लंबे समय तक निषिद्ध सामग्री की खिड़कियां सबके लिए खोलता यह इंटरनेट ?पूरी दुनिया को ,सामाजिकता को ,परिवार संस्था को कितनी बड़ी कीमत चुकाना पड़सकती है कल्पनातीत है। 
             जीवन यथार्थ से दूर ,जिंदगी से पलायन करता  ,सामाजिकता से दूर हटता आज का आदमी चिंतनीय है।            

  •          उल्लेखनीय है कि भारत में मोबाइल का प्रथम प्रयोग 31 जुलाई 1995 को हुआ ,जब तत्कालीन केंद्रीय संचार मंत्री सुखराम ने दिल्ली में संचार भवन से और बंगाल के मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने राइटर बिल्डिंग कोलकाता से आपस में मोबाइल पर बात की 1983 में इसे खोजे जाने का श्रेय मार्टिन कूपर को है ।इसी प्रकार भारत में इंटरनेट सर्विस की सार्वजनिक तौर पर शुरुआत 14 अगस्त 1995 को सरकार की विदेश संचार निगम लिमिटेड बी एस एन एल द्वारा की गई।यह भी तथ्य है कि मूलतः इंटरनेट अमेरिकी रक्षा विभाग की संचार सेवा के अंतर्गत प्रयोगों से प्रारंभ हुआ। सन 1969 में 4 कंप्यूटरों को जोड़कर बनाया गया एडवांस रिसर्च प्रोजेक्ट एजेंसी नेटवर्क यानी ARPANET ही इंटरनेट के रूप में सन 1990 तक विकसित हो गया ।
            दुनिया में वर्तमान में लगभग सभी के मन को सर्वाधिक आकर्षित करने वाले सम्मोहित करने वाले इस इंटरनेट और इससे उपजी, आभासी दुनिया यानी वर्चुअल वर्ल्ड और यथार्थ की दुनिया के रिश्तो के बीच का सही बैलेंस यदि 
    बनाया जा सके तो निश्चय ही जिंदगी कितनी हसीन हो जाए........ बार-बार जीने लायक खूबसूरत हो जाए।

  •              डा. एस एल गोयल