कोरोना आतंक : वर्चुअल और रीयल का द्वंद्व

   क्या जमाना था वह भी ! सहज रूप में कहीं भी आना -जाना, खाना -पीना, घूमना -फिरना ,मौज -मजा ,वार -त्योहारों की धूम ,शादी -ब्याह, बैंड बाजे ,भीड़ -भाड़,देश-विदेश के टूर, मौज-मस्ती ,न जाने क्या क्या ...........पता नहीं ?किस राहु की नजर लग गई।क्या चीन.......? 


   अभी बमुश्किल छह महीने ही तो बीते हैं। रह -रहकर खूब याद आते हैं। कहां गए? वो दिन !


   क्या वह जमाना फिर आएगा ?मन कहता है, जरूर आएगा -जरूर आएगा ।पूरा विश्वास रखो ----------घनघोर काली रात्रि के बाद फिर सवेरा होगा। सूरज चमचमाएगा। हर रात की सुबह पक्की है, एकदम पक्की। सबके चेहरों पर आनंद मिश्रित मधुर मुस्कान होगी।                                                        कल्पना करना भी मुश्किल है कि यदि इंटरनेट युक्त मोबाइल न होता तो, कोरोना का यह दुष्काल बिताना कितना मुश्किल होता ।तीन चार महीने के लॉकडाउन का समय ........जब चारों ओर सन्नाटा बिखरा हुआ था, घर की दहलीज़ पार करना भी वर्जित था। या यह अनलाक का वर्जनाओं भरा समय.......... मेरे हमदम, मेरे दोस्त सा लगा है यह इंटरनेट -मोबाइल सभी को 


            अब तो कोरोना हल्के हल्के दौड़ने भी लगा है ।सारे अस्पताल सरकारी हो या प्रायव्हेट ठसाठस भरे हुए हैं ।कोई बेड खाली नहीं .......आईसीयू बेड या ऑक्सीजन सपोर्टेड बेड...... वेटिंग चल रही है। नये संक्रमित को प्रतीक्षा करना है कई दिन तक। भारत में ही संक्रमितों का सरकारी आंकड़ा 59लाख के पार हो रहा है।                                                       कोरोना वार्ड में भर्ती हों या आईसीयू /गहन चिकित्सा इकाई में या होम क्वॉरेंटाइन/ गृह एकांतवासी हो। बाहरी दुनिया से ,यहां तक कि ,घरवालों से भी संपर्क का प्रमुख साधन एकमात्र मोबाइल ही हो गया है ।टापू में रहने वालों सा अकेलापन जिंदगी में आने लगा है। 


             संक्रमण से बचे रहने के लिए शेष लोगों को भी 'घर में रहिए सुरक्षित रहिए ' की राह पर चलना है ।बहुत जरूरी होने पर ही घर से निकले ।तो भी पहले जैसे सहज मिलना -जुलना नहीं है, किसी के यहां जाना तो कतई नहीं है, सब से दूरी बनाकर अपनापन निभाने का वक्त है ।दिमाग में पक्का बैठा ले, हल्के में जरा भी ना लें ,मामला बहुत ज्यादा ही सख्त है।वायरस ना लगे ----तब तक चाहे जो कहते रहें .ठिठोली करते रहे और जब यह लग गया तो बोलती बंद ....... ...अनेक बार जिंदगी तक पर प्रश्नचिन्ह ?घर वाले भी चाह कर भी पास नहीं आ सकते ......और .......और भगवान ही मालिक है ।हंसते खेलते परिवारों को चंद दिनों में ही उजड़ते देखा है ।बर्बादी का मंजर सारे समाचार माध्यमों में /अखबारों में आता ही रहता है ।


                कोरोना से बचाव का महामंत्र अभी तो यही है ------मास्क ,सोशल डिस्टेंसिंग और यथासंभव कहीं ना आना -जाना, ना मिलना- जुलना, बनते कोशिश घर से बाहर ही न निकलना। मिलने जुलने से, भीड़ में शामिल होने से, पता नहीं ,कब किससे संक्रमण लग जाए ।भारी खतरा है, आशंका है ।जड़ता की, गति शून्यता की।     भयानक स्थितियों में भी जीवन थमता नहीं ।कोई ना कोई रास्ता निकाल ही लेता है ,मनुष्य ।लाखों सालों के मानव इतिहास में न जाने कितने मिटा देने वाली प्राकृतिक आपदाएं, महामारियां अकाल आदि आए ।मनुष्य गिरा, थमा ,पर फिर उठा और आज तक निरंतर गतिमान है। इसे ही हिंदी के प्रसिद्ध आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने जय यात्रा कहा है।मनुष्य की जय यात्रा निरंतर गतिमान है ।


         इंटरनेट ने आभासी दुनिया का विस्तार कर गतिविधियों के थमे पहियों को फिर गति से भर दिया ।वेबिनार ,डिजिटल मंच ,ऑनलाइन सारे काम ,कार्यक्रम सभी प्रकार के उत्सव ,आयोजन, घर बैठे बैठे यह सब कुछ ,ऑनलाइन इंटरव्यू ,कोर्ट में सुनवाई भी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से, भाग लेने वाले वकील कार में बैठे-बैठे कोर्ट की कार्रवाई में भाग ले रहे हैं । सभी गतिविधियों को सक्षमता और प्रभावशाली रुप में व्यक्त कर रही है---------आभासी दुनिया। पिछले दिनों लोकप्रिय धारावाहिक तारक मेहता का उल्टा चश्मा में गोकुलधाम वालों द्वारा गणेश उत्सव का वर्चुअल प्लैटफार्म पर आयोजन उत्कृष्ट उदाहरण है ।उत्सव ,सभा ,कार्यक्रम सभी कुछ डिजिटल मंच मंच से अपने-अपने घर बैठे हुए ,साथ ही असली कार्यक्रमों की तरह भागीदारी निभाते हुए ,अपनी बात कहते हुए ,आनंद लेते हुए ,आयोजित हो रहे हैं ।


      स्कूल हो या उच्च शिक्षा संस्थान--- उन्हें शुरू करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे। बड़ी संख्या में विद्यार्थियों के भी संक्रमित होने की आशंका/ खतरा पूरा पूरा है। पर इसी इंटरनेट ने नया रास्ता खोल दिया --------ऑनलाइन पढ़ाई का , वीडियो लेक्चर का, वेबिनार का ,इंटरएक्टिव एंड हैप्पी लर्निंग आईएचएल का, आदि का। 


 


               कोरना काल से पहले ,कभी नहीं आया ऐसा ख़राब वक्त। न पढ़ा, न देखा, न सुना ।अत्यंत क्रूर ,काला चेहरा है इसका, जो मार्च 2020 से मोटे तौर पर प्रारंभ हुआ ।प्राकृतिक आपदाएं ,महामारियां, अकाल एक से एक भयावह संकटों की लंबी सूची है ।उन सब से यहां तक कि सन उन्नीस सौ अट्ठारह उन्नीस के स्पेनिश फ्लू से भी यह भयानक है ।बंबईया बुखार के नाम से भी जाने जाने वाला स्पेनिश फ्लू ----जिसमें उस जमाने में पूरी दुनिया में मरने वालों की संख्या 5 करोड़ के लगभग थी ,और भारत उस वक्त कुल 23 करोड़ की आबादी का था, 1करोड़ 20 लाख से ऊपर मृत्यु का आंकड़ा दस्तावेजों में अंकित है ।


           पर यह कोरोना वायरस अभूतपूर्व है ,सबसे भयानक है। इसलिए कि यह बेहद -बेहद संक्रामक है ।जरा सा निकट जाते ही ,अल्प समय में ही संक्रमण हो जाता है। और फिर भयानक स्थितियां.......कभी- कभी .मौत भी। 


                अजीब है यह सब उस वायरस से होता है जो सूक्ष्म ही नहीं ,अति सूक्ष्म है ।बाहर पड़ा है तो अजीवित है ।शरीर में आ गया तो यह परजीवी जिंदा हो जाताहै।पूरी दुनिया में फैले हुए कोरोना वायरसों को तोला जाए तो कुल 4 ग्राम से भी कम वजन निकलेगा ।


             सारे जमाने की नाक में दम कर दिया है इसने ।कैसा खराब वक्त आया है। जीना तो महा कठिन, पर मरना भी महा कष्टदायक। व्यक्ति तड़प रहा है ,कुछ कहना चाहता है ,पर कोई परिजन चाह कर भी पास तक नहीं आ सकता ।विवश है परिजन संक्रमण के खतरे से ,बनाए हुए नियमों ,प्रोटोकॉल से , अंतिम संस्कार तक नहीं कर सकते।


        


                                                  कोरोना के इस संकटकाल में संवाद का सेतु या संपर्क पथ का निर्माता है इंटरनेट- मोबाइल। ज्यादा समय नहीं बीता, जब इसी बहुरंगी ,विविध वर्णी कंटेंट /सामग्री वाले नटखट मोबाइल से शिकायतों का ढेर था ---------यह कर्तव्य पथ से विचलित कर देता है ।सब लोगों को अपने मायाजाल में लपेट ,आवश्यक करने योग्य कामों से उनका ध्यान हटा देता है ।8 माह का बच्चा हो या 80 साल के बासाब ,सूर्य की पहली किरण से अगली सुबह तक जब मौका मिल गया उसी में खोए बैठे हैं ।पर सारी शिकायतें धरी रह गई ।और अत्यंत सकारात्मक, सहयोगी चेहरा मोबाइल का उभर आया -----संवाद के पुल के रूप में ।इस किनारे से उस किनारे बैठे लोगों को जोड़ने वाले सशक्त माध्यम के रुप में। रियल/ वास्तविक/ यथार्थ दुनिया ना सही उसकी पूर्ति करते हुए एक नई दुनिया ------ वर्चुअल वर्ल्ड की/ आभासी दुनिया की रचना कर ,एक नयी राह दिखा महत्वपूर्ण अवदान दिया है। 


              अब समझ में आ गया हे! इंटरनेट मोबाइल ---क्या गजब की चीज हो तुम। अब तक के सारे अविष्कारों में, विज्ञान के अवतारों में सबसे अग्रणी, नमन करने योग्य। न केवल आफत काल में , अपितु ,सामान्य समय में भी ,तुम देवता हो बल्कि महा देवता हो ।कल्याणकारी महादेव हो ------यह हम सब ने अच्छी तरह जाना है । साथ ही यह भी माना है कि स्वर्ण की तीखी कटार हो तुम। बस एक ही रेखांकित सूत्र है--तुमसे मनचाहा लाभ पाने के लिए ---------विवेक के अंकुश से ही तुम्हारा उपयोग अनिवार्य है ,नहीं तो.............?          लेखक श्री डॉक्टर प्रोफेसर एस. एल .गोयल वरिष्ठ शिक्षाविद एवं चिंतक है