•••• संविधान निर्माता के नाम वाले अंबेडकर विवि में नियम/कानून की अनदेखी करते रहे उच्च शिक्षा विभाग के अधिकारी
🔹कीर्ति राणा इंदौर।
अंबेडकर विवि की कुलपति डॉ आशा शुक्ला बरकतउल्ला विवि भोपाल के महिला अध्ययन केंद्र की प्रभारी के पद से संविदा नियुक्ति के तहत 62 वर्ष की उम्र पूर्ण होने पर सेवानिवृत्त कर दी गईं।बरकतउल्ला विवि कार्य परिषद ने उनकी सेवानिवृति आदेश के जो कारण गिनाए हैं उससे डॉ आशा शुक्ला का कुलपति पद भी संकट में पड़ सकता है।यह भी हास्यास्पद है कि जिन संविधान निर्माता डॉ अम्बेडकर के नाम वाले विवि में वे कूटरचित दस्तावेजों की बदौलत कुलपति पद पर नियुक्त की गईं हैं, एक तरह से राजभवन को भी धोखे में रखा गया है।
आरएसएस के दबाव-प्रभाव में उनकी इस पद पर नियुक्ति संबधी दस्तावेजों का तब सत्यापन नहीं करने वाले जारी करने वाले प्रमुख सचिव उच्च शिक्षा, प्रमुख सचिव राजभवन, प्रमुख सचिव वित्त
भी उसी कार्यपरिषद के सदस्य हैं जिसके राज्यपाल द्वारा नामित अशासकीय सदस्यों ने संविदा नियुक्त मान कर उन्हें 62 वर्ष में सेवानिवृत करने के निर्णय को सर्वानुमति से मंजूरी दी है।बरकतउल्ला विवि कार्यपरिषद द्वारा पारित इस निर्णय से इस कार्यपरिषद के सदस्य इन तमाम प्रमुख सचिवों की भूमिका भी संदेहास्पद हो गई है।
इसलिए 62 वर्ष में हुईं सेवानिवृत
उच्च शिक्षा विभाग के नियमों के तहत संविदा पर कार्य करने वाले चाहे वरिष्ठ या कनिष्ठ पद पर हों उन्हें 62 वर्ष में सेवानिवृत्त किया जाता है। यदि ऐसे व्यक्ति अध्यापन कार्य से जुड़े हों तो उनके लिए सेवानिवृत्ति के लिए 65 वर्ष की उम्र का प्रावधान है। डॉ आशा शुक्ला बरकतउल्ला विवि में महिला अध्ययन केंद्र की प्रभारी थीं। यूजीसी द्वारा ग्रांट के तहत यह पद पूर्णत: अस्थायी था और 2007 में समाप्त कर दिया गया था। इस के विरुद्ध वे कोर्ट में गईं थी और स्टे प्राप्त होने से उन्हें वेतन का भुगतान बरकतउल्ला विवि द्वारा किया जा रहा था जबकि यूजीसी ने पद समाप्ति के बाद 2007 से ग्रांट बंद कर दी थी।
कुलपति पद पर नियुक्ति के लिए उन्होंने जो दस्तावेज लगाए अब वह भी कूटरचित साबित हो रहे हैं क्योंकि इस पद के लिए पहली और अनिवारय योग्यता तो यही है कि आवेदक ने दस साल अध्यापन कार्य कराया हो, जबकि वे संविदा नियुक्ति पर रहीं और अध्यापन कार्य कराया होता तो 65 वर्ष में सेवानिवृत्त होतीं।दस्तावेज कूटरचित होने में यह तथ्य भी सामने आया है कि जिस महिला अध्ययन विभाग का हवाला दिया गया, वह विभाग बरकतउल्ला विवि में कभी रहा ही नहीं, जबकि अंबेडकर विवि में कुलपति पद पर नियुक्ति इसी आधार पर हुई थी कि दस वर्ष अध्ययन कार्य किया है।दस्तावेजों का सूक्ष्म परीक्षण नहीं कर के उक्त तमाम प्रमुख सचिवों ने भी राजभवन को अंधेरे में रखा।
इसके विपरीत आरटीआई में कुलपति के दस्तावेजों को लेकर जानकारी मांगने वाले अभिभाषक अजय त्रिपाठी द्वारा बाग सेवनिया थाना भोपाल में दर्ज शिकायत के जवाब में कुलसचिव बीयू डा उपेंद्र नाथ शुक्ला लिखित में अपना बयान दे चुके थे कि उनके या विवि द्वारा इन्हें को कोई अनापत्ति प्रमाणपत्र जारी नहीं किया है, खुद आशा शुक्ला ने ही यह कूटरचित दस्तावेज बनाया है।यही नहीं बीयू कुलपति डॉ आरजे राव ने भी पत्र में स्पष्ट लिखा है कि वे कभी प्राध्यापक नहीं रहीं।
क्यों बड़ेगी मुसीबत
🔹इस फर्जीवाड़े को लेकर कोर्ट में मामला पहुंचना तय है।
🔹जिस दिन से उन्होंने अंबेडकर विवि कुलपति का पद संभाला उस तारीख से वसूली भी की जा सकती है।
🔹कूटरचित दस्तावेज प्रमाणित होने पर उनके विरुद्ध धोखाधड़ी (धारा 420) का मामला भी दर्ज हो सकता है।
🔹भोपाल के बाग सेवनिया थाने में इस आशय का आवेदन पहले से ही लंबित है लेकिन संघ/भाजपा के दबाव में कार्रवाई ठंडी पड़ी हुई है।
🔹बरकतउल्ला विवि में जिन शोधार्थियों ने उनके अंडर में पीएचडी की है, उनका भविष्य भी संकट में पड़ सकता है।
और इधर रविवार के दिन टर्मिनेट आदेश जारी
अंबेडकर विवि के कुलसचिव डॉ डीके शर्मा का स्टे खारिज होने के बाद शासन और कोर्ट का आदेश मिलने के पहले ही उन्हें मुक्त कर विक्रम विवि के अजय वर्मा को इस पद पर ज्वाइन करा दिया। यही नहीं रिसर्च एसोसिएट के पद पर कार्यरत डॉ नीता शर्मा को टर्मिनेट करने का आदेश भी अवकाश वाले दिन रविवार को जारी कर दिया। अंतर्राष्ट्रीय स्तर के एनजीओ से जुड़ी रहीं डॉ शर्मा ने 20 सितंबर 20 को यहां पद रिक्त होने पर अप्लाय किया था और उनका चयन उनकी योग्यता के आधार पर किया गया था।टर्मिनेट किए जाने से पहले चेतावनी देने, स्पष्टीकरण मांगने जैसे नियमों का पालन भी नहीं किया गया। खुन्नस में किए गए उनके टर्मिनेशन को लेकर विवि में चर्चा यह है कि डॉ डीके शर्मा की बहन होने से डॉ नीता शर्मा के विरुद्ध यह कार्रवाई की गई।