अकादमिक लेखन की भाषा सहज-सरल होनी चाहिए - प्रो. बी.के. शर्म


उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय की डॉ. अम्बेडकर पीठ द्वारा संचालित गतिविधियों की निरन्तरता डॉ. अम्बेडकर पीठ की उपयोगिता और प्रामाणिकता को सिद्ध कर रही है। पीठ द्वारा आयोजित 'अकादमिक लेखन का कार्यशाला शोध-प्रविधि की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कड़ी है। अकादमिक लेखन का उद्देश्य न सिर्फ लेखन भाषा की सर्वोत्तम अभिव्यक्ति है, बल्कि उत्तम माध्यम भी है। विषय और विशेषज्ञता अलग हो सकती है, लेकिन उद्देश्य एक ही है। अनुसंधान का लिखित स्वरूप कथ्य और विचार अभिव्यक्त करता है। शोध-प्रबंध की भाषा सहज और सीधी होनी चाहिए, अलंकारिक नहीं। साहित्य में कुछ अलंकारिक भाषा हो सकती है।
उक्त विचार माननीय कुलपति प्रो. बी.के. शर्मा ने डॉ. अम्बेडकर पीठ द्वारा आयोजित तीन दिवसीय 'अकादमिक लेखनकी कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में कही। प्रो. शर्मा ने कहा अनुसंधान की भाषा निष्पक्ष तथ्य के आधार पर होनी चाहिए। पूर्वाग्रह की भाषा का उपयोग शोध में नहीं होना चाहिए। शोध की भाषा विषय-वस्तु की कसौटी पर होना चाहिए। तथ्य की वास्तविक जानकारी के आधार पर संदर्भ ग्रन्थ, सहायक ग्रंथ रेखांकित किया जाना चाहिए। भाषा का उपयोग तटस्थ भाव से होना चाहिए। संदर्भो का आनुपातिक उपयोग आवश्यक है। शोध भाषा का निश्चात्मक, विषयानुकूल होनी चाहिए।
स्वागत भाषण देते हुए डॉ. अम्बेडकर पीठ के प्रभारी निदेशक डॉ. सत्येन्द्र किशोर मिश्र ने 'अकादमिक लेखनकार्यशाला के शोधार्थियों के लिए उपयोगी व महत्त्वपूर्ण बताया। डॉ. मिश्र ने कहा शोध-प्रबंध की भाषा सरल, सहज, स्पष्ट होनी चाहिए। शोध--प्रबंध में उद्धरण दूसरे के हो सकते हैं, लेकिन गुण-दोष के लिए स्वविचार का होना आवश्यक है। वरिष्ठ आचार्य डॉ. प्रेमलता चुटैल ने भी अपने विचार व्यक्त किए तथा उनकी विशेष उपस्थिति रही।
कार्यक्रम का संचालन व आभार शोध अधिकारी डॉ. निवेदिता वर्मा ने किया।


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