संझा एवं मांडने की कला ने कृष्णा वर्मा को राष्ट्रीय पहचान दिलवाई  


 
उज्जैन । मालवा की संझा एवं मांडने की कला आज लुप्त होने की कगार पर है। इसको सहेजकर रखने में उज्जैन निवासी कलाकार कृष्णा वर्मा ने अपना जीवन लगा दिया है। मध्य प्रदेश के शिखर सम्मान से सम्मानित सुश्री कृष्णा वर्मा मूल विधा मांडना संझा को आगे बढ़ाना चाहती हैं। वर्षों की साधना एवं निरन्तर लोककला की सेवाओं का प्रतिफल है कि वे आज राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान एक कलाप्रेमी, कला आचार्य एवं कला निदेशक के रूप में बना चुकी हैं। लोक संस्कृति की संवाहक सुश्री कृष्णा वर्मा को उनके योगदान के लिये हाल ही में मध्य प्रदेश की संस्कृति मंत्री डॉ.विजयलक्ष्मी साधौ ने निमाड़ उत्सव में वर्ष 2017 का अहिल्या सम्मान भेंट किया।
 प्रसिद्ध लोक नाट्य 'माच' के कलाकार श्री सिद्धेश्वर सेन की पुत्री सुश्री कृष्णा वर्मा का जन्म वर्ष 1956 में उज्जैन में हुआ। उन्होंने अपने पिता की तरह मालवा की कलाओं को आगे बढ़ाने के लिये निरन्तर श्रम किया। सुश्री वर्मा मालवा के लोकनृत्य मटकी पनिहारी, जात्रा, स्वांग, कानगुवालिया आदि का संचालन भी करती हैं। मालवा के विभिन्न त्यौहारों पर बनाये जाने वाली रूपंकर कला में लोकचित्र मांडना, भित्तिचित्र एवं विभिन्न त्यौहारों पर बनाये जाने वाली मालवा की विशेष आकृति संझा की सिद्धहस्त कलाकार हैं। सुश्री कृष्णा वर्मा की प्रदर्शित कलाओं को अनेक अवसरों पर सराहना मिली है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति श्री शंकरदयाल शर्मा, श्री केआर नारायणन, पूर्व प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी, श्री नरसिंम्हाराव, श्रीमती सोनिया गांधी, श्री मोतीलाल वोरा, श्री अर्जुनसिंह, श्री दिग्विजयसिंह आदि ने इनकी कलाओं को देखा है व सराहना भी की है। उज्जैन की इस लोक कलाकार को अनेक पुरस्कार मिले हैं। वर्ष 2002-03 में मध्य प्रदेश संस्कृति संचालनालय द्वारा शिखर सम्मान, पं.सूर्यनारायण व्यास सम्मान 2007, सारस्वत सम्मान 2017, सांस्कृतिक स्त्रोत एवं प्रशिक्षण केन्द्र दिल्ली द्वारा वरिष्ठ फेलोशिप तथा वर्ष 2017-18 का मध्य प्रदेश शासन संस्कृति संचालनालय का राष्ट्रीय देवी अहिल्या सम्मान हाल ही में सुश्री वर्मा को प्रदान किया गया है। सुश्री वर्मा बताती हैं कि उनकी इच्छा मालवा की लोककला को आगे बढ़ाने की है।