श्रीमद् भगवत गीता भगवान की श्वास और भक्तों का विश्वास- महंत मनीष गीता मंगलमय जीवन का ग्रंथ, यह केवल लाल कपड़े में बांधकर रखने के लिए नहीं


उज्जैन। गीता मंगलमय जीवन का ग्रंथ है, यह केवल लाल कपड़े में बांधकर रखने के लिए नहीं है। इसे पढ़कर आत्मसात करने के लिए है। गीता मंगलमय जीवन का ग्रंथ है, जीवन उत्थान के लिए इसका स्वाध्याय हर व्यक्ति को करना चाहिये। ये हमें पलायन से पुरूषार्थ की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा देती है। गीता भगवान की श्वास और भक्तों का विश्वास है।
उक्त उद्गार मानस भवन क्षीरसागर पर गीता जयंती महोत्सव के शुभारंभ अवसर पर महंत मनीष महाराज दंदरोआ धाम वेद विद्यालय बड़नगर रोड़ उजड़खेड़ा ने व्यक्त किये। महोत्सव का शुभारंभ महाराजश्री द्वारा श्रीकृष्ण के चित्र पर माल्यार्पण कर किया गया। आचार्य पं. वासुदेव पुरोहित ने कहा गीता के सूत्र हमारे जीवन में परिलक्षित होने चाहिये। हमारी सारी क्रियाएं गीता को संस्कारित होंगी तो हमारे जीवन में समता का बोध हो जायेगा। कर्तव्य कर्म में निष्ठा हो जाएगी। पं. संत्यम दुबे भगवाताचार्य ने कहा कि ये एकादशी मोह का क्षय करने वाली है। इस कारण इसका नाम मोक्षदा एकादशी रखा गया है। इसी दिन मानवता को नई दिशा देने वाले गीता का उपदेश हुआ। यह तिथि गीता जयंती के नाम से प्रसिध्द हुई। कार्यक्रम के प्रारंभ में पं. संतोष शर्मा एवं वेदपाठी बटुकों द्वारा स्वास्तिक वाचन किया गया। महाराजश्री का स्वागत दिनेश सुखनंदन जोशी, मनमोहन मंत्री, अजय शर्मा, पं. संजय व्यास, पं. संतोष शर्मा, धर्मेन्द्र, हरीश के द्वारा किया गया। संचालन मानस भवन के सचिव दिनेश सुखनंदन जोशी ने किया। समिति के पदाधिकारियों द्वारा महाराजश्री का शाल, श्रीफल भेंटकर सम्मान किया गया। अंत में वेदपाठी एवं पंडितों द्वारा गीताजी का सामूहिक पाठ किया गया।


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