भारत का गौरवशाली इतिहास लिपियों में है -डॉ.मुकेश शाह  


उज्जैन । प्राचीन भारत से लेकर अरवाचीन तक भारत का गौरवशाली इतिहास भारतीय लिपियों में दिखाई देता है। लिपियों के प्रमाण ईसापूर्व से प्राप्त होते हैं, जो तत्कालीन स्थितियों को इतिहास के पन्नों में दर्ज करते हैं। उक्त विचार विक्रम कीर्ति मन्दिर में प्राचीन लिपियों और पुरातत्व पर आयोजित कार्यशाला में पुरातत्वविद डॉ.मुकेश शाह ने व्यक्त किये।डॉ.शाह ने अपने व्याख्यान में ब्राह्मी, गुजराती और देवनागरी के माध्यम से विद्यार्थियों और शोध छात्रों को बताया कि किस प्रकार लिपियों का विस्तार हुआ। इसे बोर्ड पर लिखकर लेखांकित किया और यह भी बताया कि सम्राट अशोक के लेख पूरे भारत में ब्राह्मी लिपि में लिखे मिलते हैं।
 डॉ.अंजनासिंह गौर ने कहा कि आर्थिक व्यवस्था में सर्वाधिक महत्वपूर्ण मुद्राएं हैं। इनका व्यापार में भी अत्यन्त महत्व है। वस्तु विनिमय आया तो गायों के लेन-देन से व्यापार को बढ़ाया गया। सर्वप्रथम आहत जनपदीय सिक्कों का प्रचलन आरम्भ हुआ। जनपदीय सिक्के तक्षशिला में मिलते थे, जिनके अग्रभाग में ब्राह्मी और पुरोभाग में खरोष्ठी लिपि में लेख अंकित हैं। मुद्रा ही इतिहास लिखने का सबसे महत्वपूर्ण स्त्रोत है।
 डॉ.आरसी ठाकुर ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में शोधछात्रों को प्राचीन पांडुलिपियां दिखाई और रंगों का उदाहरण भी दिया। कार्यक्रम में डॉ.रमण सोलंकी, डॉ.किरण सोलंकी, डॉ.मंजू यादव, डॉ.प्रीति पाण्डेय, डॉ.हेमन्त लोदवाल और शोध विद्यार्थी मौजूद थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ.रितेश लोट और आभार प्रदर्शन डॉ.प्रकाशचन्द्र माथुर ने किया।


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