उज्जैन । उज्जैन के शासकीय माधव संगीत महाविद्यालय में शास्त्रीय गायन के प्रति लगाव की जीती-जागती मिसाल हैं यहां की प्राध्यापक श्रीमती खेमलता मर्सकोले। जब वे चार वर्ष की थीं तब किसी बीमारी के कारण उनकी आंखें चली गई, लेकिन इसके बावजूद दृष्टिहीनता संगीत के प्रति उनकी लगन को कणभर भी कम न कर सकी।
श्रीमती मर्सकोले ने ब्लाइंड स्कूल से नियमित शिक्षा के साथ-साथ संगीत की शिक्षा भी ग्रहण की। वे पिछले 15 सालों से महाविद्यालय में शास्त्रीय गायन नई पीढ़ी को सिखा रही हैं। उनका कहना है कि संगीत के प्रति गहरी आस्था और विश्वास यदि हो और इस क्षेत्र में कुछ कर गुजरने की इच्छा हो तो बड़ी से बड़ी समस्या भी आपके सामने घुटने टेक देती है और आपको सफलता देर से ही सही, लेकिन प्राप्त जरूर होती है। श्रीमती मर्सकोले के लिये संगीत किसी इबादत से कम नहीं है।
श्रीमती मर्सकोले के अलावा शासकीय संगीत महाविद्यालय में गायन के प्राध्यापक श्री गोपाल की कहानी भी काफी हद तक मिलती-जुलती है। वे पिछले 12 वर्षों से महाविद्यालय में शास्त्रीय गायन सिखा रहे हैं। श्री गोपाल मूल रूप से सीहोर जिले के रहने वाले हैं। उनकी भी आंखों की दृष्टि किसी वजह से चली गई थी, परन्तु तमाम मुश्किलों के बावजूद उन्होंने संगीत से अपना रिश्ता बरकरार रखा।
दृष्टिहीनता भी कम न कर सकी संगीत के प्रति लगाव