मम्मी जी, आप नहीं है, पर यहीं कहीं हैं


     आज मातृदिवस के बहाने अपनी माँ के बारे में लिख रहा हूँ। । मेरी माँ   विद्यावती द्विवेदी का जन्म 4 जनवरी  1940 को हुआ था ,उनकी माँ का नाम सरस्वती द्विवेदी और पिता का नाम सीताराम द्विवेदी था,जो हाइसेकंड्री स्कूल में हेड मास्टर थे।
मम्मी की शिक्षा कन्या हाई स्कूल न होने के कारण 8 वीं में ही रोक दी गई।16 वर्ष की आयु में शादी हो गई।
उन्होंने सागर के पुरव्याऊ टोरी  के स्कूल से आठवीं की पढ़ाई करने के बाद, शादी होने और हम तीनों भाई-बहन को स्कूल और कॉलेज  में पढ़ाते हुए ,खुद भी शिक्षा ग्रहण की। एक समय ऐसा था जब मैं ग्वालियर के साइंस कॉलेज में छात्र राजनीति में सक्रिय था, तब मेरी मम्मी  केआरजी कॉलेज ( ग्वालियर का सबसे बड़ा महिला कॉलेज) के हिंदी विभाग की छात्र संघ की अध्य्क्ष  थीं ।
हमारे परिवार में माँ का प्रभाव सर्वाधिक रहा है
          माँ की इच्छा थी कि उनके तीनों बच्चों में से एक डॉक्टर ,एक इंजीनियर और एक नेता बनें,और ऐसा ही हुआ । मेरी बहन ग्वालियर मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर है और भाई ने इंजीनियरिंग की आजकल कनाडा में है।
          इमरजेंसी के दिनों जब मैं स्कूल में था तब मेरी मम्मीजी इंदिरा गांधी की तानाशाही के खिलाफ कविताएं लिखा करती थी । शायद यहीं से मुझे कांग्रेस विरोध तथा सरकार की तानाशाही के खिलाफ संघर्ष करने का संस्कार मिला ,जो सिलसिला आज भी चल रहा है । माँ कृष्ण की भक्त थी इसलिए हमारा घर  सदा  कृष्णमय  रहा,  सभी बच्चों के जन्मदिन पर मम्मी खुद  सत्यनारायण भगवान की कथा किया करती थी ,सबको नये कपड़ें खरीदवाती थी । उन्हें अच्छे कपड़े पहनने और पहनाने ,पौष्टिक भोजन करने और कराने का शौक था ।
    .       माँ को लेकर सैकड़ों किस्से याद आते हैं, जब मैं ग्वालियर के इंजीनिरिंग  कॉलेज में पढ़ता था तथा एक छात्र आंदोलन में हमने कॉलेज में हड़ताल की थी तब जिलाधीश एवं पुलिस अधीक्षक ने मेरे पिताजी को बुलाकर समझाया था कि आप अपने बेटे को कॉलेज से ले जाओ नहीं तो उस पर मुकदमा दर्ज हो जाएगा, गिरफ्तारी हो जाएगी और जिंदगी बर्बाद हो जाएगी ।  पिताजी मुझे घर ले गए थे तथा घर पहुंचाकर  पिताजी वापस स्कूल लौट गए थे  तब मम्मीजी ने मुझसे कहा कि लड़कों को छोड़कर कैसे आ गए, जाओ हड़ताल में छात्रों नेतृत्व करो । जब मैं  लौटकर कॉलेज पंहुचा तो  एस पी ,कलेक्टर गेट पर खड़े थे, उन्होंने कहा कि हमें मालूम था कि तुम जरूर लौटोगे । उन्होंने लाठीचार्ज कराया और गिरफ्तारी की। तब मैं पहली बार ग्वालियर जेल में बंद हुआ था।
 
मेरे पिताजी केंद्रीय विद्यालय में प्राचार्य थे उनका तबादला माउंट आबू ,जबलपुर हुआ ,जहाँ भी तबादला हुआ, मम्मी जी साथ रहीं। जब  ग्वालियर में रहीं तब  बिरला नगर के रविन्द्र विद्यालय में प्राचार्य के तौर पर कार्य किया।
     माँ प्रगतिशील विचारों की थी,उन्होंने हम तीनों भाईबहन को अपनी इच्छा से न केवल शादी करने के लिए प्रेरित किया बल्कि हम सबके निर्णय को सराहा भी और स्वीकार किया इसलिए शादी के बाद परिवार में जो  नये सदस्य आए मतलब मेरी बहन के पति डॉ.अश्विनी त्रिखा, मेरी पत्नी वंदना शर्मा और भाई की पत्नी रश्मि महिन्द्रा तीनों के साथ उनकी मित्रवत घनिष्ठता रही। हम सब के बच्चों को शाश्वरत ,डिम्पी ,परी ,अनादि अनंत  सभी को उन्होंने बहुत लाड़ प्यार दिया।
     मुलताई गोलीचालन के बाद मुलताई में हर महीने किसान महापंचायत का सिलसिला शुरू हुआ था। 11 सितंबर 1998 को बरई में किसान महापंचायत रखी गई जिसमें  भाग लेने पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा, पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव जी आए थे। कांग्रेसियों ने काले झंडे दिखाकर उनका विरोध किया था । जब बरई में किसान महापंचायत चल रही थी तब मुझे सूचना मिली कि माताजी की तबीयत बिगड़ गई है । मैं गोंडवाना एक्सप्रेस से ग्वालियर पंहुचा, सीधे आई सी यू में गया,जहां मेरी बहन ने ग्वालियर मेडिकल कॉलेज के वरिष्ठ डॉक्टरों के साथ मम्मी का इलाज जारी रखा  था। माताजी ने मुझे देखकर कहा  कि -बेटा तुम आ गए। मैनें उनका सिर गोदी में रखा और उन्होंने मुझसे कहा- अब मैं जा रही हूँ, और उनकी मौत हो गई।
इसी कारण मेरी जिंदगी का सबसे दुखदायी दिन 12 सितंबर 1998 हो गया।
 उनके पार्थिव शरीर को लेकर मैं गाड़ी में उनका सिर गोदी में रखकर घर आया उनके शरीर की गरमाहट मैं आज भी महसूस करता हूँ।
     माँ  चाहती थी कि मैं गरीबों की मदद करूं,विशेष तौर पर अनाथों और महिलाओं के लिए काम करूँ ।राजनीति में ऊंचाइयां हासिल करूं।
     मुझे सदा इस बात का  दुख रहता है कि  मुझे जब मुलताई के किसानों ने दो बार विधायक बनाया तब सबसे ज्यादा  खुशी जिन्हें  होती, वे मेरी मम्मी जीवित नहीं रहीं।
मम्मीजी की स्मृतियां बराबर बनी रहती हैं, मुझे आज भी प्रेरणा और ऊर्जा देती रहती हैं। उन्हें शत शत प्रणाम । एम.सुनीलम


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