कोरोना से मौत के मामले में ‘सर्वाधिक मृत्यु दर’ के चलते उज्जैन का नाम पूरे देश में सुर्खियों में रहा। केंद्र शासन और राज्य शासन की निगाहें भी उज्जैन पर थीं।कहा गया कि स्वास्थ्य सेवाओं में गंभीर खामियों के कारण एक-के-बाद-एक मौतें हो रहीं हैं। कुछ समय के बाद ऐसा भी हुआ कि निरंतर मौतों का ये सिलसिला अचानक रुक गया। क्या वाकई उज्जैन की स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर कर दीं गईं कि जिसके चलते कोरोना संक्रमण से तेजी से हो रही अकाल मौतों को थाम लिया गया? प्रशासनिक सक्रियता के चलते कोरोना का राक्षस क्या सचमुच दुबक गया?
संभागीय मुख्यालय होने के बावजूद उज्जैन में उपलब्ध चिकित्सा सुविधाएं, अपने-अपने धंधों में मशगूलराजनीतिक नेतृत्व और नाकारा प्रशासनिक अमले ने जो कोरोना के दौर में जो माहौल बनाया, उसे कौन भुला सकता है। उज्जैन में कोरोना काल के दौरान जो कुछ भी घटित हुआ, उसने राष्ट्रीय स्तर पर तो सुर्खियां बटोरीं ही पर जिम्मेदार लोगों को भी पसीने ला दिए। ‘तालाबंदी’शुरू पहली मौत उज्जैन से ही सामने आई। मृत्यु दर जब 22 प्रतिशत से भी ऊपर जाने लगी और शहर में ही 1200 मौतें 25 मार्च से 31 मई की अवधि में हो गईं, तो सभी भौंचक्के रहे गए।
इसके बाद महत्वपूर्ण अफसरों को रातों-रात बदल दिया गया। निजी मेडिकल कॉलेज अस्पतालों से मनमाने एग्रीमंट किए जाने लगे॰ कोरोना मरीजों की स्थिति कुछ सुधार की तरफ दिखी तो दावे होने लगे कि कोरोना को नियंत्रित कर लिया गया है और हालात जल्दी ठीक जाएंगे। लेकिन क्या यही सब सच्चाई थी? क्या जो जानकारी परोसीं जा रहीं थीं, वो एकदम तथ्यपरक थीं?क्या उज्जैन कोरोना के विरुद्ध जंग जीत चुका था? क्या किसी प्रकार के संदेश के लिए कोई गुंजाइश नहीं बची थी?
इस प्रकरण को देखें तो सारी हकीकत एक बार में ही स्पष्ट हो जाती है:-102, बेगमपुरा निवासी एक 72 वर्षीय पुरुष को 17 मई को आरडी गार्डी मेडिकल कॉलेज मेंभर्ती किया था और इनकी मौत 2 जून को सुबह 7.15 बजे होना बताई गई। मौत का कारण भी कोरोना पॉज़िटिव माना गया। चिकित्सकीय प्रमाण-पत्र में उनकी मृत्यु का कारण ‘रेस्पिरेटरि फ़ेल्युर’ बताया गया। उनका अंतिम संस्कार कोरोना प्रोटोकॉल के अनुसार ही किया गया। मगर जिला प्रशासन ने उक्त मृत्यु को कोरोना मृत्यु ही नहीं माना। कोरोना पॉज़िटिव लोगों की सूची में उक्त व्यक्ति को 321 नंबर पर दर्शाते हुए 30 मई को डिस्चार्ज होना बताया गया है। ऐसे में प्रश्न खड़ा होता है कि जिस शख्स को आरडी गार्डी मेडिकल कॉलेज द्वारा 2 जून को कोविड से मरना बताया गया है, उसे आखिर जिला प्रशासन ने 30 मई को ही स्वस्थ मानकर डिस्चार्ज होना कैसे घोषित कर दिया? दो विभाग आखिर एक ही व्यक्ति को अपने-अपने रेकॉर्ड में मृत और जिंदा कैसे बता रहे हैं? उक्त मृतक के परिवार में 11 सदस्य कोरोना पॉज़िटिव पाए गए। इसी वजह से बेगमपुरा दूसरा बड़ा हॉटस्पॉट बना। 2 जून को मरने वाला जिसका अंतिम संस्कार भी कोरोना प्रोटोकॉल के तहत हुआ, वह प्रशासनिक रिकॉर्ड में 30 मई को ही डिस्चार्ज हो गया था, अकेले इस प्रकरण ने प्रशासनिक रिकॉर्ड पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है, सवाल यह भी है कि कोरोना होने वाली कुछ और मौत भी क्या इसी तरह छुपाई गई है, उज्जैन में कोरोना काल मैं हुई मौतों का ऑडिट हुआ तो अनेक आश्चर्यजनक तथ्य सामने आने की स्थिति बन सकती है। विक्रमादित्य क्लॉथ मार्केट के एक व्यापारी की कोरोना से होने वाली मौत को भी अभी तक उज्जैन की सूची में शामिल नहीं किया गया है, जिससे यह आशंका भी बनी हुई है कि इंदौर में और ऐसी कितनी कोरोना मौतें है, जो छुपाई गई है, या उज्जैन की सूची में शामिल नहीं हुई है।