कोरोना काल में न्याय भी हुआ प्रभावित,,,,,लॉकडाउन की अवधि में न्यायिक कार्य का तुलनात्मक अध्ययन- वीडियो कान्फ्रेंसिंग से हो रही सुनवाई

   कोरोना काल में न्याय भी हुआ प्रभावित


राजगढ। कोरोना वायरस COVID 19 के संक्रमण के कारण लॉकडाउन होने से न्याय देने में विलंब न हो और सुनवाई के दौरान संक्रमण को रोका जा सके इस उद्देश्य से मध्यप्रदेश के समस्त न्यायालयों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अर्जेंट प्रकृति के प्रकरणों की सुनवाई की जा रही है। वीडियो कॉन्फ्रेंस पर सरकारी वकील, आरोपीगण, पक्षकारगण, फरियादी पक्ष, वकील और न्यायाधीश सीधे जुड़ते हैं। वीडियो कॉन्फ्रेंस मोबाइल एप एवं वीसी रूम के जरिए हो रही है। 


     माननीय उच्च न्यायालय मध्यप्रदेश के निर्देश एवं जिला न्यायाधीश राजगढ श्रीमान प्रभात कुमार मिश्रा के मार्गदर्शन में जिला न्यायालय में वीडियो कॉन्फ्रेंस की सुविधा शुरू की गई है। कोरोना महामारी में न्यायालय में भीड़ न हो और आवश्यक प्रकरणों की सुनवाई भी न अटके इसके लिए प्रतिदिन न्यायाधीशगण मामलों में सुनवाई करते हैं। वर्तमान समय में न्यायालयों में ऐसे प्रकरणों को सुनवाई हेतु नियत किया जा रहा है जिनमें किसी भी साक्षी की साक्ष्य नहीं होना है और प्रकरण में केवल अंतिम तर्क प्रस्तुत किये जाना है, अथवा प्रकरण में केवल निर्णय पारित किया जाना है, अथवा आरोपीगणों की जमानत संबंधी आवेदनों की सुनवाई की जा रही है।


       इस संबंध में अभियोजन के जिला प्रमुख श्री आलोक कुमार श्रीवास्तव ने विस्तृत चर्चा में अवगत कराया कि माननीय उच्च न्यायालय के आदेशानुसार मामलों में सुनवाई के लिए वकीलों और पक्षकारों को न्यायालय आने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन पक्षकार और अधिवक्ता जिन्हें आवश्यक प्रकृति के अपने मामलों में सुनवाई से पहले जिला न्यायालय में ईमेल आईडी पर अपना आवेदन के साथ आवश्यक दस्तावेज मेल करने पड़ते हैं। ईमेल प्राप्त मामले में जिला न्यायालय द्वारा अत्यावश्यक प्रकृति के मामले पाए जाने के लिए न्यायाधीशगण को प्राधिकृत कर सुनवाई के लिए नियत किया जाता है।    इसके बाद संबंधित न्यायाधीश सुनवाई की तारीख और समय निश्चित करते हैं। इसके बाद ईमेल पर संबंधित थानों के स्केन डायरी मय प्रतिवेदन के जिला अभियोजन कार्यालय की शासकीय मेल आईडी पर प्राप्त की जाती है। जहां से उक्त केस डायरी संबंधित न्यायालय जहां सुनवाई की जाना है, की मेल आईडी पर भेज दी जाती है। डायरी भेजने के पूर्व थाना प्रभारी एवं जिला अभियेाजन अधिकारी को यह सुनिश्चित करना होता है कि केस डायरी के सभी पेजों को स्कैन कर लिया गया है और सभी दस्तावेज सहित पूर्ण डायरी न्यायालय को भेजी जा रही है। इस संबध्ंा में तदाशय का प्रमाण पत्र भी थाना प्रभारी एवं जिला अभियोजन अधिकारी को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करना होता है। 


न्यायालय के लगभग सभी अधिवक्ताओं के द्वारा अपने मोबाइल पर माननीय उच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित एप डाउनलोड किया गया है। संबंधित अधिवक्ता के पास मोबाइल पर न्यायालय से लिंक भेजा जाता है। जिससे संबंधित अधिवक्ता अपने घर से मामलों में तर्क प्रस्तुत करते हैं और उन्हें न्यायालय में उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं रहती है। अगर किसी संबंधित अधिवक्ता के पास मोबाइल सुविधा उपलब्ध नहीं है तो वह न्यायालय में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग हेतु बनाए गए रिमोट प्वाइंट (कक्ष) से भी तर्क प्रस्तुत करते हैं। 


सुनवाई उपरंात संबंधित न्यायालय द्वारा मामले में आदेश होने पर न्यायालय सीआईएस में अपलोड कर दिया जाता है और संबंधित अधिवक्ता को आदेश की सूचना मैसेज व ईमेल से प्रदान कर दी जाती है। इस प्रकार लॉकडाउन प्रारंभ होने से अभी तक कई मामलों में सुनवाई कर प्रकरण का निराकरण किया गया है।


         आगे श्री श्रीवास्तव ने बताया कि न्यायालयों में किसी भी प्रकरण में साक्ष्य तब अभिलिखित की जाती है जब पूरे छः व्यक्तियों की टीम उपस्थित होती है। इनमें आपराधिक प्रकरणों में 1- पीठासीन अधिकारी, 2 साक्ष्य देने वाला साक्षी, 3- शासन की ओर से लोक अभियोजक 4- अभियुक्त 5- अभियुक्त के अधिवक्ता 6- न्यायालय में साक्ष्य लिखने हेतु साक्ष्य लेखक। इसी प्रकार दीवानी प्रकरणों में 1- पीठासीन अधिकारी, 2 साक्ष्य देने वाला साक्षी, 3. वादी की ओर से अधिवक्ता 4- प्रतिवादी 5- प्रतिवादी के अधिवक्ता 6- न्यायालय में साक्ष्य लिखने हेतु साक्ष्य लेखक। इस कारण माननीय उच्च न्यायालय के द्वारा कोविड-19 वायरस के संक्रमण को दृष्टिगत रखते हुए साक्ष्य लेखन का काम दिनांक 21-03-2020 से स्थगित किया गया है। तत्संबंध में माननीय उच्च न्यायालय के द्वारा सर्कुलर नंबर सी/1778 जारी किया गया था जिसमें निर्धारित अवधि समय-समय पर बढाई जा रही है और वर्तमान में भी साक्ष्य लेखन संबंधी कार्य स्थगित है।


पिछले साल की तुलना में इस साल 455 केस में न्याय नहीं मिल सका, मार्च में लाॅकडाउन के पहले के निराकृत मामले ही देखे तो केवल 14 केस में निर्णय हुआ है कुल 515 केस में न्याय निलंबित हुआ है।    माह मार्च से जून 2019 तक विभिन्न दाण्डिक न्यायालयों और सत्र न्यायालय तथा विशेष न्यायालयों द्वारा संपादित की गई कार्यवाही का तुलनात्मक विवरण निम्नानुसार हैः


इस प्रकार माह मार्च से जून तक राजगढ जिले के समस्त न्यायालयों में वर्ष 2019 में कुल 233 प्रकरणों में आरोपीगणों को न्यायालय में हुई साक्ष्य के आधार पर दण्डित किया गया था और कुल 295 अभियुक्तगणों को साक्ष्य के आधार पर बरी किया गया था। जबकि वर्ष 2020 में इसी अवधि में 18 प्रकरणों में सजा एवं 55 प्रकरणों में आरोपीगणों को बरी किया गया है। माह मार्च में 20 मार्च तक न्यायालयों का कार्य नियमित रूप से संपादित हुआ है और इस अवधि में कुल 17 प्रकरणों में दोषसिद्धि एवं 43 प्रकरणों में दोषमुक्ति के आदेश पारित किये जा चुके थे, जिनके उपरंात लाॅकडाउन लागू किया गया था। यदि यह आंकडे भी वर्ष 2020 में उक्त अवधि में निराकृत अवधि से घटा दिये जावे तो केवल 1 प्रकरण में दोषसिद्धि एवं मात्र 12 प्रकरणों मे आरेापीगणों को अभिलिखित साक्ष्य के आधार पर दोषमुक्त किया गया है। इन प्रकरणों में वह आंकड़े सम्मिलित नहीं है, जिनमें आरोपीगण स्वयं अपना अपराध स्वीकार कर न्यायालय द्वारा सुनाया गया जुर्माना न्यायालय में जमा करते है।


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