उज्जैन । उज्जैन से किन्नर अखाड़े का जन्म हुआ था, और अब इन्ही किन्नरों ने शहर को स्वच्छता सर्वेक्षण में प्रथम स्थान दिलाकर हमारी इज्जत बचाई है , "बधाई से सफाई" अभियान में उज्जैन प्रथम आया है, किन्नरों की मेहनत रंग लाई है ,अगर किन्नरों जितनी ईमानदारी से नगर निगम के जिम्मेदारों ने भी काम किया होता तो आज उज्जैन पहले पायदान से खसककर 12वे पर नही पहुंचता । किन्नरों की मेहनत से यह साफ हो गया है कि नगर पालिक निगम के वरिष्ठ अधिकारी किन्नरों से भी गए गुजरे हैं, दरअसल नगर पालिक निगम के अधिकारी निरंकुश होकर कार्य कर रहे हैं ,बदहाली का आलम यह है कि निगम का एक भी अधिकारी पत्रकारों के फोन तक उठाने की जहमत नहीं करते ,इसके अतिरिक्त नगर पालिक निगम के वसूली अधिकारी भारी कमीशन लेकर सारे शहर को बदसूरत बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं, शहर के प्रमुख मार्गो पर स्थित दुकानों का सामान दुकान में कम और सड़क पर अधिक होता है इन दुकानदारों से किन्नरों की तरह ही *"नेग"* लेने का काम नगर निगम बखूबी कर रही है और यही ""नेग " शहर की सुंदरता को नष्ट कर रहा है। नगर निगम की गैंग सड़क पर भयंकर गुंडागर्दी के साथ आम नागरिकों को परेशान करने से पीछे नहीं हटती ,खूबसूरत शहर को बदसूरत शहर में बदलने का काम नगर पालिक निगम के अधिकारियों और कर्मचारियों ने पिछले 2 सालों में बखूबी किया है ,स्वच्छता मिशन के नाम पर करोड़ों रुपयों की बर्बादी करने वाला नगर निगम शहर के प्रमुख स्थलों पर आकर अंधा हो जाता है ,इसका स्पष्ट उदाहरण गोपाल मंदिर के सामने स्थित छत्री चौक है, 100 फीट से अधिक चौड़े मार्ग पर पैदल चलना भी मुश्किल है ,यहां 100 से अधिक अवैध अतिक्रमण नगर पालिक निगम के अधिकारियों को नजर नहीं आते जो उनके अंधेपन का उदाहरण है, पिछले 1 साल से नगर पालिक निगम ने शहर की सफाई व्यवस्था पर ध्यान देने की जगह अपनी कमाई की व्यवस्था पर ज्यादा ध्यान दिया जिसका परिणाम हमारे सामने है नगर पालिक निगम के सभी अभियान लगभग असफल रहे। शहर की 90% दुकानों पर अमानक पॉलीथिन आसानी से उपलब्ध है, इसके अलावा शहर के प्रमुख मार्गों को छोड़कर गलियों में फैली गंदगी के दर्शन आसानी से किए जा सकते हैं, स्वच्छता मिशन के जिम्मेदारों ने स्वच्छता के नाम पर जो रेवड़ी बांटी है वो किसी से छुपी नही है, गोआ में बना आलीशान फाईव स्टार होटल शायद इसी स्वच्छता मिशन के कचरे से निर्मित हुआ है, करोड़ो के इस घालमेल में नेताओ से लेकर अधिकारियों तक ने अपने हाथ लाल किये है, तमाम तरह की नाटक नोटंकियो में करोड़ो रूपये बर्बाद करने वाला उज्जैन नगर पालिका निगम अब खाली हाथ खड़ा है और उसके पास अब किन्नरों की तरह ताली बजाने का अधिकार भी किन्नरों ने ही छीन लिया है, oनगर निगम के अधिकारियों में जरा भी शर्म बाकी हो तो वह शहर की जनता से और पत्रकारों से सीधे जुड़कर शहर की भलाई में अपना योगदान दे सकते हैं।
किन्नरों के दम पर जीत, नगर निगम के अधिकारियों के लिए शर्मनाक