कदम कदम बढ़ाती हिंदी ......पर.... परन्तु......... 

  • 2020 हिंदी दिवस 14सितंबर


बैंकॉक के मुख्य बाजार में प्रवेश करते ही साथियों की आश्चर्य मिश्रित पुकार सुनाई दी : अरे देखो, उस दुकान पर हिंदी का बोर्ड....... चोटीवाला .....भारतीय व्यंजन ....थाईलैंड की राजधानी में जो सुखद विस्मय मिला था ,गत वर्ष यानी अगस्त 2019 में यूरोप यात्रा के वक्त भी उसमें वृद्धि होती रही ।लंदन हो या पेरिस ,आस्ट्रिया हो या जर्मनी या इटली या कोई देश ,कोई नगर ऐसा ना था जहां हमारी प्यारी हिंदी बोली जाती हुई और साथ ही ठेठ भारतीय शाकाहारी खाना यहाँ तक कि जैन खाना उपलब्ध न हुआ हो। सारी दुनिया में, यत्र -तत्र- सर्वत्र यह उपलब्ध है ।


 स्विट्जरलैंड की उस सुहानी सुबह में ,स्वच्छ नीले जल से भरी झील ,पीछे बादलों से आंख मिचोली खेलती पहाड़ी श्रखला, मनोरम प्रकृति गोद और वहां प्रातः भ्रमण करते हुए ,अनेक बार वहां के निवासियों का मुस्कुराकर नमस्ते करना प्रीतिकर था। और यह अनुभव लंदन ब्रिज हो या पेरिस का एफिल टावर या अन्य जगह सभी दूर उपलब्ध रहा ।


 संपूर्ण दुनिया में हिंदी के इस व्यापक प्रचार-प्रसार में अनेक का योगदान है ।सबका दिल जीतने वाली, सहज दोस्ती करने वाली हिंदी आज दुनिया में सर्वाधिक बोले जाने वाली भाषाओं के तीसरे पायदान पर प्रतिष्ठित है । दिसंबर 2019 के आकलन के अनुसार ..........प्रथम पायदान पर 113 करोड़ के साथ है अंग्रेजी । दूसरे स्थान पर मन्दारिन या चाइनीस भाषा जिसके बोलने वाले हैं 111.7 करोड और तीसरे पायदान पर स्थित हमारी हिंदी जिसके बोलने वाले हैं 61 करोड़ पचास लाख। चौथे स्थान पर स्पेनिश भाषा है जिसके बोलने वाले 53 करोड लोग हैं ।पांचवें स्थान पर है फ्रेंच भाषा जिसके बोलने वाले 28 करोड़ है ।उल्लेखनीय कि अंग्रेजी के 45% शब्द फ्रेंच मूल के हैं ।अंग्रेजी जानने वालों के लिए स्पेनिश भाषा सीखना बहुत ही सरल है। यह दुनिया में दूसरे नंबर की सर्वाधिक अध्ययन की जाने वाली भाषा है ।                                                       हिंदी फिल्म और गानों की अभूतपूर्व लोकप्रियता ने दुनिया में हिंदी को पहुंचाया है, इससे कोई इनकार नहीं कर सकता। इसी के साथ ही साथ भारत का बहुत बड़ी व्यापार मंडी होना, उपभोक्ताओं की बहुत बड़ी संख्या ,उनसे संपर्क का प्रभावशाली माध्यम हिंदी का होना आदि अनेकानेक कारक हैं। आज के वक्त में स्वामी रामदेव के योग के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापक प्रभाव ,अंतरराष्ट्रीय जगत में पीएम मोदी के कारण भारत के बढ़ते हुए कद आदि से भी हिंदी के प्रचार को बढ़ावा मिला है। लगभग सभी देशों में भारतीय इंजीनियर ,डॉक्टर, विभिन्न कार्य क्षेत्रों में कुशल लोगों की रेखांकन योग्य संख्या व प्रभावशाली उपस्थिति इन सब ने हिंदी को आगे बढ़ाया है। कोरोना संक्रमण के भय से सारी दुनिया अब हाथ मिलाना छोड़ कर नमस्ते की राह पर चलना आरंभ कर चुकी है तो यह भी हिंदी के प्रसार का ही संकेत है ।टीवी ,मोबाइल ,इंटरनेट के उपयोग करने वालेभारतीयों की बहुत बड़ी संख्या भी एक महत्वपूर्ण बिंदु है।


   हिंदी अत्यंत सशक्त है ,सामर्थ्यवान है ,समृद्ध है ।संस्कृत की गौरवशाली विरासत उसे प्राप्त हुई है ।परंतु संस्कृत को हिंदी की जननी कहना ठीक नहीं है 


 हिंदी की जननी तो है अपभ्रंश भाषा..... शौरसेनी नाम है जिसका। संस्कृत तो पड़दादी है हिंदी की । दादी है प्राकृतभाषा वही जिसमें प्राचीन जैन धर्म साहित्य लिखा गया है खड़ी बोली हिंदी को आधुनिक हिंदी भाषा बनाने में महावीर प्रसाद द्विवेदी ,भारतेंदु हरिश्चंद्र पृभति अनेकों का हाथ है। हिंदी भाषा परिष्कार के अन्यतम महावीर थे -----महावीर प्रसाद द्विवेदी, तो खड़ी बोली हिंदी साहित्य के श्री गणेश कर्ता एवं साहित्य की अनेकानेक विधाओं के प्रेरणा पुंज ,आरंभ कर्ता, भारत माता के महान सपूत ,भारती के अप्रतिम स्वर थे ------भारतेंदु हरिश्चंद्र। 


         एक हजार साल से अधिक लंबे इतिहास वाली हिंदी आज भारत की मुख्य भाषा राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित है ।पर राष्ट्र भाषा नहीं बन सकी है। 


        भारत के संविधान निर्मात्री सभा ने 14 सितंबर 1949 को हिंदी को भारत की राजभाषा के रूप में मान्य किया। सन 1953 से राष्ट्रभाषा प्रचार सभा, वर्धा के द्वारा प्रस्ताव किये जाने पर ,हिंदी के प्रचार -प्रसार हेतु 14 सितंबर को प्रतिवर्ष हिंदी दिवस मनाने की परंपरा प्रारंभ हुई। प्रश्न यह है कि सात दशक से अधिक हिंदी दिवस मनाते हो गए ।क्या हिंदी विकास और प्रतिष्ठा के मार्ग में जो बाधाएं पहले थी क्या वे हल हो गई ?हिंदी की सबसे बड़ी समस्या है ....... अपने ही देश में लोगों द्वारा नहीं स्वीकार किया जाना ,विशेषकर दक्षिण भारत के लोगों का तीव्र विरोध ।वह चाहे राजनीतिक कारणों से हो या अन्य से ,अपने ही देश में सर्व मान्यता का अभाव विदेश में हिंदी के राह में बाधा प्रस्तुत करता है। 


       हिंदी का फलना- फूलना तभी संभव है जब उसके पक्षधरों में ,हिंदी नेताओं में कट्टरता ना हो ।अन्य भाषाओं के बोलने वालों को ,उनके राजनेताओं को भी विश्वास में लेकर चले,भारत की सभी भाषाएं सम्माननीय है ।बहुत अच्छी है ।बेशक वे भारत माता के गले की हार की , कंठमाला की मणियों के रूप में सुशोभित है ।हिंदी की स्थिति उस कंठमाला के मध्य स्थित उस सुमेरु या पेंडल की तरह है ।


यदि एक को प्रमुख औरसंपर्क भाषा न मानेंगे और यह क्षमता हिंदी में ही है ,तो एक प्रदेश का दूसरे प्रदेश से संपर्क टूट जाएगा और समस्त ज्ञान-विज्ञान का विकास रुक जाएगा ।बहुत ही आवश्यक है कि भारत की सभी भाषाओं विशेषकर दक्षिण के समस्त लोगों और राजनेताओं को भी यह विश्वास हो जाए कि हिंदी तमिल तेलुगू मलयालम कन्नड़, सभी की बड़ी बहन की तरह है । हिंदी के विकास में उनकी भाषाओं का विकास भी पूरी तरह सन्निहित है ।साथ ही उनके किसी भी प्रकार के राजनीतिक या अन्य हितों में हिंदी का विकास मार्ग में ना आएगा ।क्या इतने वर्षों में प्रभावशाली और सार्थक पहल हिंदी बेल्ट के राजनेताओं और हिंदी के व्यापक समुदाय द्वारा हो सकी है ?


       हिंदी का विकास उसके रोजगार देने, दे सकने की क्षमता के अंदर भी सन्निहित है। जो भाषा रोजगार देगी ,वही चल सकेगी ।संघ लोक सेवा आयोग की आईएएस आदि के सीसैट के प्रश्न पत्र का विरोध भी इसी का प्रतीक था ।सिविल सर्विसेज एप्टीट्यूड टेस्ट का यह प्रश्न पत्र प्रश्नों के घेरे में है ।वेद प्रताप वैदिक के अनुसार इसमें जो सवाल हिंदी में पूछे जाते हैं उनकी हिंदी माशाअल्लाह होती है ,क्योंकि वह हिंदी नहीं ,अंग्रेजी का भ्रष्ट अनुवाद होता है। गूगल का उटपटांग अनुवाद दिया जाता है --------जैसे स्टील प्लांट का अर्थ लोहे का पौधा और वाच डाग का अर्थ कुकुर दृष्टि कर दिया जाता है। छात्र क्या करें ? इसी से जुड़कर समस्या है ----हिंदी के स्वरुप की ।वह सरल होना चाहिए ।आसान होना चाहिए ।समझने योग्य होना चाहिए ।वह अनुवाद की निर्जीव भाषा नहीं होना चाहिए। 


       आज हम सभी मिश्रित ,मिलीजुली भाषा बोल रहे हैं ,जिसे आप चाहे तो हिंग्लिश भी कह सकते हैं। आज की बोल चाल की, मोबाइल पर लिखे जाने वाली हिंदी में अंग्रेजी के शब्दों की भरमार के साथ तकनीकी कारणों से अनेक बदलाव हैं। इसमें अंग्रेजी के शब्दों की प्रधानता      यह तो सही है कि जिस भी भाषा के शब्द आ जाए उनके स्वागत का भाव होना चाहिए।पर जानबूझकर अंग्रेजी या अन्य शब्दों को ठूंसना भी नहीं चाहिए ।हिंदी के बढ़ते हुए दायरे के लिए आवश्यक है ।यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि भाषा का विस्तार जड़ प्रक्रिया नहीं है ।समय के साथ होने वाले आवश्यकतानुसार बदलाव को सहज आत्मीय भाव से स्वीकार कर पचा कर ही हिंदी आगे बढ़ी है ।हमें अपनी हिंदी को सबका ,विशेष कर दक्षिण भारतीयों का दिल जीतने वाली हिंदी बनाना है ।यह उदारता ,सौहार्द हिंदी को आगे बढ़ाने में निश्चित ही सफल होगा।हिंदी का भविष्य उज्जवल है। वह विश्वभाषा के पथ पर निरन्तर गतिमान है।(लेखक -प्रोफेसर डॉ. एस. एल .गोयल)


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