कोरोना काल में दिवंगत हुए 100 से अधिक लोगों की अस्थियां अपने रिश्तेदारों के फूल तक लेने के लिए लोग नहीं पहुंचे उन्हें लावारिस मानकर सरकारी कर्मचारियों ने हाल ही में उनकी अस्थियों का विसर्जन कर दिया। क्या विडंबना है सारे रिश्ते नाते परिवार के व्यक्ति की आंख बंद होने के बाद चाहे पिता हो या मा हो भाई हो या बहन हो पत्नी हो या बच्चे हो उसको भूल गए अंतिम समय में उसको मोक्ष भी ना मिल पाए इसलिए उसकी अस्थियां भी विसर्जन तक करने नहीं आये हम लोग स्वार्थ में इतने अंधे हो गए हैं या मौत का डर हमें इतना सता रहा है कि हम अपने खून के रिश्तो,व संबंधों को भी भूल गए और हमारे अपने परिवार के ही मृतक लोगों के अस्थियों को लावारिस मानकर लोगों ने विसर्जित करके गरीबों को भोजन कराया और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की हम सब को विचार करना चाहिए हम सब कहां जा रहे हैं क्या सोच रहे हैं और आने वाले समय में सारे रिश्तों और संबंधों को किस तरह जिए और रहे इस पर गंभीरता से विचार अवश्य करना चाहिए
विजय अग्रवाल
(अध्यक्ष राष्ट्रीय युवा फोरम मध्य प्रदेश)