उज्जैन. देश के प्रख्यात पुराविद्, इतिहासकार व विक्रम विवि की प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व अध्ययनशाला के पूर्व आचार्य डॉ. श्यामसुन्दर निगम बहु विद्याविद् और अविराम ज्ञान साधक थे। पुरातिहास के साथ साहित्य, दर्शन, लोक संस्कृति, आयुर्वेद, वाणिज्य जैसी कई विधाओं में उन्होंने विद्वता की छाप छोड़ी है। डॉ. निगम का जन्म 25 अक्टूबर 1931 को महिदपुर के समीप स्थित ग्राम ढाबला में अमृतलाल निगम और कावेरीदेवी निगम के यहां हुआ था। अध्ययन की रुचि इतनी प्रबल कि उन्होंने अनेक विषयों में उपाधियां अर्जित की।
मालवा के पुरातात्विक, ऐतिहासिक, सामाजिक और आर्थिक पक्षों पर उन्होंने महत्वपूर्ण कार्य किया था। पश्चिम मध्य प्रदेश हर पुरा महत्त्व का स्थल पर वे पहुंचे। रतलाम जिले के कलस्या, शिपावरा, कराडिय़ा, गुलबालोद आदि जैसी महत्वपूर्ण प्रागेतिहासिक सभ्यताओं की खोज और अनुशीलन का कार्य संभव हुआ था।
डॉ. निगम के दो दर्जन से अधिक ग्रन्थों और सैंकड़ों अनुसन्धानपरक आलेखों का प्रकाशन किया। इसमें अवंती क्षेत्र और सिंहस्थ महापर्व, मालवी की उपबोलियां और उनका सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य, उज्जैन, मालवी साहित्य का इतिहास, खंगार क्षत्रिय, पोरवाल, कुमावत जाति का इतिहास, ब्रजायन, कूर्मांचल से मालवांचल, तुकांत-अतुकांत, और भी हैं धरातल आदि हैं। उन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया।
विक्रम विश्वविद्यालय से सेवा निवृत्ति के बाद उन्होंने केशव नगर स्थित स्वयं के आवास पर श्री कावेरी शोध संस्थान की स्थापना की। इस संस्थान के जरिए उन्होंने हजारों की संख्या में भारतीय विद्या, इतिहास, संस्कृति, पुरातत्व, साहित्य सहित विविध ज्ञानानुशासनों से सम्बद्ध स्तरीय ग्रन्थों, दुर्लभ शोध सामग्री और पत्र-पत्रिकाओं की अमूल्य विरासत को सहेजा। लगभग ढाई दशक पूर्व उन्होंने प्रतिष्ठित त्रैमासिक शोध पत्रिका शोध समवेत की शुरुआत की, जिसने अल्प समय में ही देश-दुनिया में अलग पहचान बना ली थी। उनके व्यक्तित्व, जीवन और अवदान पर दो विशिष्ट ग्रन्र्थों - अमृतपुत्र और निगमागम का प्रकाशन भी हुआ था। वे आजीवन विद्या की आराधना में लीन रहे। उज्जयिनी की रत्नगर्भा माटी के विलक्षण रत्न थे डॉ. निगम। सच्चे अर्थों में वे अमृत पुत्र थे। पुरातिहास और संस्कृति जगत् उन्हें कभी भुला न पाएगा।
-प्रो. शैलेन्द्रकुमार शर्मा (प्रोफेसर हिंदी अध्ययनशाला विक्रम विवि व सहित्यकार )